प्रवेश करने पर स्वागत करने वालों की छोटी सी टोली दिखाई दी, जो अपनेआप में महत्त्वपूर्ण नहीं थी, परंतु जो वहां हुआ वह बड़ा नाटकीय था. स्वागतियों का सरदार एक लंबा, तगड़ा पहरेदार लगता था. उस ने लाल रंग की सुगठित वरदी पहनी हुई थी और वह प्रत्येक मेहमान के आगमन की घोषणा कर रहा था. अभी मैं इस दृश्य को अपनी आंखों में भर ही रही थी कि घोषणा सुनाई दी, ‘सावधान, सर्वमान्य श्रीमती और श्री मजूमदार पधार रहे हैं.’ उस घोेषणा में लयबद्धता थी, एकरूपता थी, यदि आप मेहमान हैं तो अवश्य ही माननीय होंगे.
जिस परिसर में मेहमान एकत्र हो रहे थे वह भोजकक्ष से सटा था. वहीं पर सब के लिए अल्पाहार और पेय आदि की व्यवस्था थी. उस की छत से लटकता, तराशे कांच से बना हुआ विशाल झाड़फानूस अपने चारों ओर एक भव्य आभा बिखेर रहा था. वे प्रकाशपुंज सचमुच एक विचित्र विलासमय गरिमा से भरे थे. जूली और उस का पति कीथ, मेहमानों का स्वागत बड़ी तन्मयता से कर रहे थे. जब जूली की नजर मुझ पर पड़ी, वह उस विशाल कमरे में एकत्र लगभग 300 मेहमानों को लांघ कर मेरी ओर लपकी. उस ने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और बोली, ‘‘मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि तुम्हें यहां देख कर मुझे कितनी प्रसन्नता हो रही है.’’
फिर वह मुझे अपनी बचपन की सहेली डौरिस की ओर खींच कर ले गई, ‘‘मैं ने तुम दोनों को एक ही मेज पर रखा है. मुझे विश्वास है कि तुम दोनों एकदूसरे से बात करने में नहीं थकोगी.’’