जूली से मेरी पहली मुलाकात वर्षों पहले तब हुई थी जब मैं ने इंगलैंड के एक छोटे शहर से स्थानीय जल आपूर्ति कंपनी के मरम्मत एवं देखभाल विभाग में काम करना शुरू किया था. हमारे विभाग का अध्यक्ष ऐरिक, मुझे एकएक कर के सभी कर्मियों के पास ले गया और उन से मेरा परिचय कराया. पहले परिचय में इतने नाम और चेहरे कैसे याद हो सकते थे, परंतु वह एक अनिवार्य औपचारिकता थी, जिसे ऐरिक निभा रहा था.
जब हम एक महिला के पास पहुंचे, वह दूरभाष पर किसी व्यक्ति का संदेश ले रही थी. दूसरी ओर से कोई चिल्लाए जा रहा था, और वह ‘जी हां’ और ‘हूं’ आदि से अधिक कुछ कह नहीं पा रही थी. ऐरिक और मैं थोड़ा हट कर प्रतीक्षा में खड़े हो गए थे. आखिरकार वह एकतरफा वार्त्ता समाप्त हुई.
‘‘ये हैं जूली, हमारे विभाग की मणि. ये न हों तो हम न जाने क्या करें,’’ ऐरिक ने परिचय कराया, ‘‘जूली यहां आने वाली सभी शिकायतें एकत्र करती हैं.’’
‘‘पहले तो इतनी शिकायतें नहीं आती थीं. जो आती थीं उन का समाधान ढूंढ़ना भी कठिन नहीं होता था. परंतु अब तो जैसे लोगों को शिकायत करने का शौक ही हो गया है,’’ जूली मुसकराई.
‘‘ये हैं शशि मजूमदार. आशा है मैं ने उच्चारण ठीक किया,’’ ऐरिक ने कहा, ‘‘ये आप के और इंजीनियरों की टोलियों के बीच कड़ी का काम करेंगी. आशा है आप दोनों महिलाएं एकदूसरे का काम पसंद करेंगी.’’
जूली मेरी ही तरह छोटे कद की, इकहरे बदन वाली थी. आयु में मुझ से 7-8 वर्ष अधिक थी, परंतु दूर से दिखने वाले कुछ अंतरों के बावजूद हमारी रुचियों में बहुत समानता थी. हम ने न केवल एकदूसरे को पसंद किया बल्कि शीघ्र ही मित्र भी बन गईं. यद्यपि जूली की मेज इमारत की पहली मंजिल पर थी और मैं बैठती थी तीसरी मंजिल पर, फिर भी चाहे मिनट दो मिनट के लिए ही सही, हम दिन में 1-2 बार अवश्य मिलती थीं. लंच तो सदैव ही साथ करती थीं और खूब गपें मारती थीं.