लगभग हर समाज में इंसान बुढ़ापे के अपने सहारे सोचकर रखता है. लेकिन ज्यादातर लोगों की दिली इच्छा यही होती है कि जिंदगी में किसी के भरोसे न रहना पड़े. इसके लिए जरूरी है कि हम मौत के एक दिन पहले तक न केवल दिमागी और जिस्मानी रूप से सक्रिय रहें बल्कि कामकाज भी करते रहें ताकि हमारी नियमित आय का जरिया बना रहे और हमें अपने गुजर बसर करने के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत न पड़े.
अगर आपको लगता है कि यह कोरी कल्पना है तो भूल जाइए. बहुत कम ही सही लेेकिन कई ऐसे लोगों के बारे में आपने सुना होगा या देखा होगा जो स्वभाविक मौत के एक सप्ताह पहले तक और कई तो बस, एक दो दिन पहले तक सक्रिय रूप से कामकाजी रहे होते हैं. सवाल है क्या यह जिस्मानी क्षमता के बदौलत संभव है या इसके लिए हमें दिमागी रूप से मजबूत और कठोर संकल्पों वाला होना पड़ता है. विषेषज्ञ कहते हैं दूसरा विकल्प ही कारगर है. दरअसल शरीर की निश्चित क्षमताएं नहीं होतीं, उसे आप चाहे तो जितना क्षमतावान बना सकते हैं. इसके लिए आपको दिमागी रूप से मजबूत होने की जरूरत होती है और बेहद अनुशासन प्रिय होने की भी.
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तकरीबन 100 साल उम्र तक बतौर मनोचिकित्सक सक्रिय रहे जैसन बर्क कहते हैं, ‘हर दिन काम करना जीने को लुत्फपूर्ण बना देता है, यह एक थैरेपी जैसा है, जो आपको हर दिन अपनी नियमित गतिविधि के साथ तरोताजा कर देता है.’ कहने का मतलब यह कि आप काम से थकते नहीं हैं, ऊबते नहीं हैं, असमर्थ नहीं होते बल्कि तरोताजा होते हैं और सामथ्र्यवान भी बनते हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा देर तक आॅस्ट्रलियाई लोग काम करते हैं. एक औसतन आॅस्ट्रेलियाई मरने के कुछ महीने पहले तक कामकाजी रूप से सक्रिय रहता है. दुनिया में जहां औसतन रिटायमेंट की उम्र 60 साल है, वहीं आॅस्ट्रेलिया में यह 65 साल है लेकिन साल 2035 से कानूनी तौरपर इसे बढ़ाकर 70 साल किये जाने का कानून बन चुका है.