‘‘अरे गणपत, आजकल देख रहा हूं, तेरे तेवर बदलेबदले लग रहे हैं,’’ आखिर भवानीराम ने कई दिनों से मन में दबी बात कह ही डाली.
गणपत ने कोई जवाब नहीं दिया. जब काफी देर तक कोई जवाब न मिला तो थोड़ी नाराजगी से भवानीराम बोले, ‘‘क्यों रे गणपत, कुछ जवाब क्यों नहीं दे रहा है. गूंगा हो गया है क्या?’’
‘‘हम गांव के सरपंच हैं,’’ गणपत ने धीरे से उत्तर दिया.
‘‘हां, तू सरपंच है, यह मैं ने कब कहा कि तू सरपंच नहीं है पर तुझे सरपंच बनाया किस ने?’’ कहते हुए भवानीराम ने गणपत को घूरते हुए देखा. गणपत की भवानीराम से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. यह देख भवानीराम फिर बोले, ‘‘बोल, तुझे सरपंच किस ने बनाया. आजकल तुझे क्या हो गया है. चल, इस कागज पर अंगूठा लगा.’’
‘‘नहीं, आप ने हम से अंगूठा लगवालगवा कर प्रशासन को खूब चूना लगाया है,’’ उलटा आरोप लगाते हुए गणपत बोला.
‘‘किस ने कान भर दिए तेरे?’’ भवानीराम नाराजगी से बोले, ‘‘चल, लगा अंगूठा.’’
‘‘कहा न, नहीं लगाएंगे,’’ गणपत अकड़कते हुए बोला.
‘‘क्या कहा, नहीं लगाएगा?’’ गुस्से से भवानीराम बोले, ‘‘यह मत भूल कि तू आज मेरी वजह से सरपंच बना है. मैं कहता हूं चुपचाप अंगूठा लगा दे.’’
‘‘कहा न मैं नहीं लगाऊंगा,’’ कह कर गणपत ने एक बार फिर इनकार कर दिया.
भवानीराम को इस से गुस्सा आया और बोले, ‘‘अच्छा, हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊं. ठीक है, मत लगा अंगूठा, मैं भी देखता हूं तू कैसे सरपंचगीरी कर पाता है.’’
भवानीराम का गुस्से से तमतमाया चेहरा देख कर गणपत एक क्षण भी नहीं रुका और वहां से चला गया. भवानीराम गुस्से से फनफनाते रहे. भवानीराम ने सोचा, ‘निश्चित ही इस के किसी ने कान भर दिए हैं वरना यह आज इस तरह का व्यवहार न करता, आज जो कुछ वह है, उन की बदौलत ही तो है.’ पूरे गांव में भवानीराम का दबदबा था. एक तो वे गांव के सब से संपन्न किसान थे साथ ही राजनीति से भी जुड़े हुए थे. वे चुनाव से पहले ही सरपंच बनने के लिए जमीन तैयार करने लगे थे. मगर ऐन चुनाव के समय घोषणा हुई कि गांव के सरपंच पद के लिए इस बार अनुसूचित जाति का व्यक्ति ही मान्य होगा, तो इस से भवानीराम के सारे अरमानों पर पानी फिर गया. अब उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उन की हां में हां मिलाए और सरपंच पद पर कार्य करे. अंतत: उन्हें ऐसा मुहरा अपने ही घर में मिल गया. यह था गणपत, जो उन के यहां खेती एवं पशुओं की देखरेख का काम करता था. अत: भवानीप्रसाद ने उसे बुला कर कहा, ‘‘गणपत, हम तुम्हें ऊंचा उठाना चाहते हैं, तुम्हारा उधार करना चाहते हैं. अत: हम तुम्हें गांव का सरपंच बनाना चाहते हैं.’’