‘‘इस औरत को देख रही हो... जिस की गोद में बच्चा है?’’
‘‘हांहां, देख रही हूं... कौन है यह?’’
‘‘अरे, इस को नहीं जानती तू?’’ पहली वाली औरत बोली.
‘‘हांहां, नहीं जानती,’’ दूसरी वाली औरत इनकार करते हुए बोली.
‘‘यह पवन सेठ की दूसरी औरत है. पहली औरत गुजर गई, तब उस ने इस औरत से शादी कर ली.’’
‘‘हाय, कहां पवन सेठ और कहां यह औरत...’’ हैरानी से दूसरी औरत बोली, ‘‘इस की गोद में जो लड़का है, वह पवन सेठ का नहीं है.’’
‘‘तब, फिर किस का है?’’
‘‘पवन सेठ के नौकर रामलाल का,’’ पहली वाली औरत ने जवाब दिया.
‘‘अरे, पवन सेठ की उम्र देखो, मुंह में दांत नहीं और पेट में आंत नहीं...’’ दूसरी वाली औरत ने ताना मारते हुए कहा, ‘‘दोनों में उम्र का कितना फर्क है. इस औरत ने कैसे कर ली शादी?’’
‘‘सुना है, यह औरत विधवा थी,’’ पहली वाली औरत ने कहा.
‘‘विधवा थी तो क्या हुआ? अरे, उम्र देख कर तो शादी करती.’’
‘‘अरे, इस ने पवन सेठ को देख कर शादी नहीं की.’’
‘‘फिर क्या देख कर शादी की?’’ उस औरत ने पूछा.
‘‘उस की ढेर सारी दौलत देख कर.’’
आगे की बात निर्मला न सुन सकी. जिस दुकान पर जाने के लिए वह सीढि़यां चढ़ रही थी, तभी ये दोनों औरतें सीढि़यां उतर रही थीं. उसे देख कर यह बात कही, तब वह रुक गई. उन दोनों औरतों की बातें सुनने के बाद दुकान के भीतर न जाते हुए वह उलटे पैर लौट कर फिर कार में बैठ गई.
ड्राइवर ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘मेम साहब, आप दुकान के भीतर क्यों नहीं गईं?’’
‘‘जल्दी चलो बंगले पर,’’ निर्मला ने अनसुना करते हुए आदेश दिया.