गुज़रते मौसमों की
गुज़रती बातों में
रातों कि आहटों में
बातों कि चाहतों में
कभी रूठते कभी मुस्कराते
कभी बैठते तो कभी नाचते
उसको उसी की ही बातों में उलझाते
हर गुज़रते मौसम कि तरह
हम भी गुज़र जाते
फिर मिलते फिर बिछडते
फिर से गाते फिर से गुन गुनाते
उसकी मोहब्बत को
अपनी चाहतो से मिलाते
नए मौसम को इस बार
मौसम कि तरह ही मनाते
गुज़रते मौसमों की
गुज़रती बातों में
हम यूहीं गुज़र जाते
...संदीप भारती
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