‘‘सुनो, दीदी का फोन आया था,’’ पति को चाय का प्याला पकड़ाते हुए प्रतिभा ने सूचना दी.
‘‘क्या कह रही थीं? कोई खास बात?’’ आलोक ने अपनी दृष्टि प्रतिभा के चेहरे पर गड़ा दी.
‘‘कुछ नहीं, यों ही परेशान थीं, बेचारी. अब देखो न, 5 वर्ष रह गए हैं जीजाजी को रिटायर होने में, अब तक न कोई मकान खरीदा है न ही प्लौट लिया है. अपनेआप को वैसे तो जीजाजी बुद्धिमान समझते हैं पर देखो तो, कितनी बड़ी बेवकूफी की है उन्होंने,’’ कहते हुए प्रतिभा ने ठंडी सांस भरी.
‘‘5 साल कहां होंगे उन की सेवानिवृत्ति में, 3 वर्ष बचे होंगे. वे तो मुझ से बड़े हैं. 4 वर्ष बाद तो मैं भी रिटायर हो जाऊंगा.’’
आलोक की बात सुन कर प्रतिभा हैरान रह गई. पति के कथन पर विश्वास नहीं हुआ था उसे. हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘सच कह रहे हो? 4 वर्ष बाद रिटायर हो जाओगे?’’
‘‘हां भई, ठीक 4 साल बाद,’’ आलोक निश्ंिचत हो कर चाय पीते रहे.
प्रतिभा को तो जैसे सांप सूंघ गया था. ऐसा कैसे हो सकता है? 4 वर्ष बाद आलोक घर में होंगे. आलोक जैसा चुस्त व्यक्ति निष्क्रिय घर पर कैसे बैठ सकता है? इतनी व्यस्त दिनचर्या के बाद एकाएक जब इंसान के पास कुछ भी करने को नहीं रह जाता तो वह कुंठाग्रस्त हो जाता है. कुंठा, तनाव को जन्म देगी और तनाव क्रोध को, फिर क्या होगा?
आलोक को वहीं छोड़ कर वह अनमनी सी रसोई की ओर चल दी. आया खाना पका रही थी. उस का पति रामदीन चटनी पीस रहा था. हमेशा प्रतिभा आया को बीचबीच में निर्देश देती रहती थी, पर अब वह चुपचाप उन्हें काम करते देखती रही. कुछ भी कहने को जी नहीं किया. सोचने लगी, ‘वैसे भी 4 साल बाद यह बंगला कहां होगा. जब बंगला नहीं होगा तो नौकरों के क्वार्टर और गैरेज भी नहीं होंगे. फिर ये नौकर, आया भी कहां. अब तो धीरेधीरे उसे हर नई परिस्थिति को झेलने के लिए अभ्यस्त होते जाना चाहिए.’