प्रिय मीना... आपको नाम से बुलाने का हक तो मुझे नहीं है. पर आपके नाम के साथ कौन सा विशेषण जोड़ के बुलाऊं, इस ऊहापोह से बेहतर है कि सिर्फ नाम से ही पुकारूं. ‘जी’ शब्द भी आपके सामने बहुत छोटा ही लगता है. खूबसूरती के सारे पर्यायों से ऊपर उठ चुकी हैं आप. माहजबीन बानो... आज आपको लोगों के दिलों में जिंदा रखने की जिम्मेदारी तो हम पत्रकारों और लेखकों की ही बनती है. पर वक्त के साथ साथ यादें धुंधली पड़ने लगती है. और शायद आपके साथ भी ऐसा ही हो रहा है.

खैर जन्मदिन पर और पुण्यतिथि पर तो याद करना फर्ज बन जाता है. पर अगर मैं आपसे कहूं की आप आए-दिन मुझे याद आती हैं तो क्या आप मानेंगी? शायद आपको मेरी बातें खोखली लगें. पर हकीकत है. चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था... पर उस सफर में भी आप याद आ गई.

आपसे इतनी लगाव की वजह तो मैं नहीं जानती. आपको ‘ट्रेजेडी क्वीन’ कहा जाता है, पर क्या वजह थी जो आपको ये ताज मिला? सिर्फ फिल्में ही वजह थी, या आपका निजी जीवन भी? इसका जवाब तो आप ही दे सकती हैं, और यह जमीनी हकीकत से परे है, क्योंकि अब इस इंसानों की दुनिया में सिर्फ आपकी कुछ फिल्में और कुछ नज्में ही बाकि हैं. हां, आप नज्में भी लिखती थी, और गुलजार साहब ने इसे प्रकाशित भी किया था. फिर भी शायरों के हुजूम में इन नज्मों को पढ़ने वाले कुछ ही लोग हैं, पर जो भी पढ़ा, इतना दर्द पाया कि आंखें चाह कर भी मुस्कुरा न पाई.

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