इनाया का जन्म आम बच्चे की तरह हुआ था. लेकिन जन्म के पहले सप्ताह में उस के मातापिता ने पाया कि उस की कलाइयां मुड़ी सी लग रही हैं. उस के पांव भी मुड़े पाए. 3 महीने होतेहोते उस की आंखों और गरदन का हिलना झटके से होने लगा. यह देख कर मातापिता हैरान हो गए और फिर डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने कई दवाएं दीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
6 महीने की आयु में उसे मिरगी के दौरे भी पड़ने लगे. जब भी दौरा पड़ता उस के हाथपांव पूरी तरह मुड़ जाते. जब दौरे ज्यादा पड़ने लगे तब किसी दोस्त के कहने पर मातापिता बच्ची को ले कर ‘स्टेम आर ऐक्स हौस्पिटल’ गए. वहां के स्टेम सैल ट्रांसप्लांट सर्जन डा. प्रदीप महाजन से मिले और बेटी का इलाज करवाया.
डा. का इस बारे में कहना है कि कम उम्र में इस थेरैपी के प्रयोग से पहले काफी जांचें करनी पड़ती हैं. मेसेनकिमल स्टेम सैल्स प्रक्रिया में इतनी क्षमता होती है कि वह कठिन रोगों को ठीक कर सकती है. इस बच्ची को 21 दिनों के लिए सैल्युलर थेरैपी 3 सत्रों में दी गई. इस से उसे काफी लाभ पहुंचा. वह बहुत हद तक नौर्मल हो चुकी है.
एक सैल यानी कोशिका से जीवन बनता है. क्या आप ने कभी सोचा कि इसी सैल से ही असाध्य रोगों का इलाज संभव है? मुंबई के सैवन हिल्स हौस्पिटल में जहां अब तक करीब 2 हजार मरीज अपना इलाज करवा चुके हैं, की चीफ औपरेटिंग औफिसर डा. रुचा पोंक्शे बताती हैं कि स्टेम सैल का प्रयोग सालों से होता आ रहा है. जिस रोगी को और्गन कैंसर होता था वहां उस के शरीर से स्टेम सैल निकाल कर कीमोथेरैपी के साथ दिए जाते थे ताकि कीमोथेरैपी अच्छी तरह से रोगी सह सके और उस का परिणाम अच्छा हो. कभी बीमारी ठीक हुई तो कभी नहीं, क्योंकि इसे कस्टमाइज्ड नहीं किया गया.