शादी के 4 साल तक भी जब गुप्ता दंपती के घर किलकारियां नहीं गूंजी तो उन्होंने आईवीएफ एक्सपर्ट से सलाह लेने का निर्णय लिया. वहां चिकित्सकों द्वारा न सिर्फ प्रजनन क्षमता की जांच की गई, बल्कि उनके डेली लाइफस्टाइल को भी जाना गया. इस में सामने आया कि पुरुष पार्टनर काफी व्यस्त रहता है और नाइट शिफ्ट में काम करता है. फिर चिकित्सक द्वारा लंबी जांच के बाद पता चला कि करीब 1 साल तक नाइट शिफ्ट में काम करने के कारण उन में कई बदलाव हुए, जिस का नतीजा रहा कि उस के शुक्राणुओं की संख्या और क्वालिटी का स्तर गिर गया.
वहीं महिला पार्टनर एक विज्ञापन एजेंसी और डिजिटल मार्केटिंग कंपनी में काम करती है. जिस का ज्यादातर काम डिजिटल मीडिया से जुड़ा है. उन की जांच में पाया गया कि उस के मैलाटोनिन हारमोन का स्तर घट गया है. मैलाटोनिन नींद आने के लिए जिम्मेदार होता है. अन्य परिणामों में सामने आया कि लगातार तनाव और अनिद्रा होने के कारण शरीर की कार्यशैली प्रभावित हुई जिस से कंसीव करने में दिक्कत आई. कई शोधों से पता चला है कि दरअसल कृत्रिम रोशनी प्रजनन क्षमता को काफी हद तक प्रभावित करती है. शोधकर्त्ताओं के अनुसार हाई लैवल का कृत्रिम प्रकाश शाम के समय खासकर शिफ्ट बदलने के दौरान सब से ज्यादा नींद को प्रभावित करता है, जिस से शरीर का बौडी क्लौक प्रभावित होता है. ऐसी स्थिति में दिमाग मैलाटोनिन कम स्रावित करता है.
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आजकल कृत्रिम प्रकाश का बड़ा स्रोत इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स है. ये लाइट्स मस्तिष्क में सिगनल दे कर निर्माण होने वाले हारमोन मैलाटोनिन को अव्यवस्थित कर देती हैं. शरीर में मैलाटोनिन कम बनने के कारण बौडी क्लौक अव्यवस्थित हो जाती है और इस से खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. सुप्राचियासमैटिक न्यूक्लियस (एससीएन) दिमाग का वह हिस्सा है जो बौडी क्लौक को नियंत्रित करता है. इस का पता ओसाका यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं समेत कई और शोधार्थी लगा चुके हैं. ‘जापान साइंस ऐंड टैक्नोलौजी एजेंसी’ भी साबित कर चुकी है कि आर्टिफिशियल लाइट के कारण महिलाओं में मासिकचक्र भी प्रभावित होता है.