कई अध्ययनों में यह साफ हो गया है कि जैसेजैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती जाती है क्रोमोसोम में खराबी आने से असामान्य अंडों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. परिणामस्वरूप गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है, साथ ही अबौर्शन होने का खतरा भी बढ़ जाता है.
कुछ महिलाओं के अंडों की गुणवत्ता 20 या 30 साल में ही खराब हो जाती है तो कुछ की 43 साल की उम्र तक भी बरकरार रहती है. एक औसत महिला की अंडों की गुणवत्ता उम्र बढ़ने के साथ कम हो जाती है.
40 की उम्र में अबौर्शन कितना सुरक्षित: 40 तक आतेआते परिवार पूरी तरह सैटल हो जाता है और बच्चे भी बड़े हो जाते हैं. तब गर्भवती होने की खबर एक शौक के समान हो सकती है. ऐसे में अबौर्शन का निर्णय लेना जरूरी लेकिन कठिन हो जाता है. यह सही निर्णय होता है, पर आसान नहीं. 30 से 35 की उम्र में अबौर्शन कराने की तुलना में 40 पार के लोगों के लिए यह अधिक रिस्की होता है.
बढ़ते अबौर्शन के मामले
स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि मातृत्व में देरी न करें, क्योंकि 30 की उम्र पार करने के बाद फर्टिलिटी कम हो जाती है. बहुत सारी महिलाएं यह मानने लगी हैं कि गर्भनिरोधक उपायों की अनदेखी करना सुरक्षित है, इसलिए उन की संख्या बढ़ती जा रही है जो 40 के बाद अबौर्शन कराती है. आईवीएफ के बढ़ते चलन ने भी इस धारणा को मजबूत किया है कि उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं की प्रजनन क्षमता तेजी से कम होती है. 30 के बाद प्रजनन क्षमता कम हो जाती है, लेकिन इतनी कम भी नहीं हो जाती कि आप गर्भनिरोधक उपायों को नजरअंदाज कर दें.