गर्भाशय का कैंसर भारत में तेजी से पांव पसार रहा है. दुनिया में इस मामले में भारत का पहला नंबर है. औरतों के इसे ले कर लापरवाही बरतने की वजह से यह तेजी से फैल रहा है. दक्षिणपूर्व एशिया, भारत और इंडोनेशिशा में कुल कैंसर मरीजों का एकतिहाई हिस्सा गर्भाशय के कैंसर से पीडि़त है. 30 से 45 साल की उम्र की औरतों में इस कैंसर का ज्यादा खतरा होता है, इसलिए इस आयु की औरतों को लापरवाही छोड़ कर सचेत होने की जरूरत है.

महिलाओं में बढ़ते गर्भाशय कैंसर के बारे में दिल्ली के एम्स के डाक्टर नीरज भटला ने पिछले दिनों पटना में महिला डाक्टरों के सम्मेलन में साफतौर पर कहा कि कैंसर को पूरी तरह डैवलप होने में 10 साल का समय लगता है. अगर पेशाब में इन्फैक्शन हो या पेशाब के साथ खून आए तो उसे नजरअंदाज न करें. अगर औरतें हर 2-3 साल पर नियमित जांच कराती रहें तो इस बीमारी से बचा जा सकता है. गर्भाशय के कैंसर से बचाव के लिए हर 3 साल पर पैपस्मियर टैस्ट और स्तन कैंसर से बचाव के लिए हर 1 साल पर मैगोग्राफी करानी चाहिए. शुरुआती समय में इस का पता चलने पर आसानी से इलाज हो जाता है.

बच सकती है जिंदगी

गौरतलब है कि देश में हर साल सवा लाख महिलाओं को बच्चेदानी का कैंसर होता है और इन में से 62 हजार की मौत हो जाती है. सर्दीजुकाम होने पर एचपीवी (ह्यूमन पौपीलोमा वायरस) औरतों के शरीर में प्रवेश कर जाता है.

सही समय पर सही इलाज हो तो दवाओं से इस वायरस को खत्म किया जा सकता है. अगर इस की अनदेखी की जाए तो यह पेट में रह कर बच्चेदानी के कैंसर की वजह बनता है. इस बीमारी के होने पर भूख कम लगती है और हमेशा भारीपन महसूस होता है.

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