देश की राजधानी दिल्ली से सटे गुडगांव उर्फ गुरुग्राम में 4 साल पहले तीन युवतियों ने मिलकर अपने एक साझे स्टार्टअप के तहत एक ‘बार’ खोला नाम रखा ‘फर बॉल’ इस स्ट्रार्टप पर विस्तार से टिप्पणी लिखते हुए लाइफस्टाइल राइटर ईरा टेंगर ने लिखा, ‘क्या आप जानते हैं कि सबसे अच्छा एहसास क्या होता है? जी,हां प्यारे प्यारे मासूम कुत्तों से घिरा होने का एहसास. तनाव से मुक्ति के लिए इससे बेहतर कुछ भी नहीं होता.’
मनोवैज्ञानिक कहते हैं तनावग्रस्त लोगों के लिए कुत्तों का साथ,तनाव दूर करने वाली किसी बढ़िया प्रभावशाली दवा के माफिक होता है. शांतनु की कहानी सुनिए. सात साल का शांतनु स्पेशल स्कूल में पढने वाला एक लड़का है. वैसे शांतनु अपनी उम्र के दूसरे बच्चों के मुकाबले किसी भी मामले में उन्नीस नहीं है बल्कि ज्यादा ही स्मार्ट और सक्रिय है. लेकिन उसमें एक कमी है,वह सही से बोल नहीं पाता. इसीलिये उसके मां बाप को मन मारकर उसे स्पेशल एजूकेशन वाले स्कूल में भर्ती कराना पड़ा,जिसका अक्सर उन्हें अफसोस रहता है ; क्योंकि शांतनु बोल न सकने के अलावा बाकी हर मामले में परफेक्ट ही नहीं अपनी उम्र के बाकी बच्चों के मुकाबले जादा स्मार्ट व इंटेलीजेंट है.
शांतनु के पिता की इस दुखभरी कहानी को उनके दफ्तर का हर शख्स जानता था. एक दिन उनके एक सहकर्मी ने उनका संजीव नाम के नौजवान से परिचय करवाया . शांतनु के पापा को उनके सहकर्मी ने बताया कि संजीव एक डॉग थैरेपिस्ट और सब कुछ सही रहा तो संजीव के ट्रीटमेंट से शांतनु अगले 6 महीने में बोलने लगेगा . शांतनु की थैरेपी शुरु हुई और उनके मम्मी-पापा के खुशी के आंसू निकल आये जब 2 हफ्तों की थैरेपी से ही शांतनु और संजीव द्वारा थैरेपी के लिए लाये गए . कुत्ते के बीच पहले जबर्दस्त बोन्डिंग पैदा हुई फिर संवाद की कोशिश होने लगी और अब शांतनु के गले से गों गों करके आवाज निकलने लगी.