हाल ही में तमिल अदाकारा विजयालक्ष्मी ने एक नेता के फौलोअर्स के द्वारा हैरस किए जाने के चलते आत्महत्या की कोशिश की. उन को बचा लिया गया. मगर भोजपुरी अदाकारा अनुपमा पाठक, सुशांत सिंह राजपूत और उन की मैनेजर रही दिशा को बचाया नहीं जा सका. चमकदमक की दुनिया में खुद को खत्म करने का यह सिलसिला नया नहीं है. जिया खान, प्रत्यूषा बनर्जी जैसे कई नाम हैं, जो बेहद कम उम्र में खुद को खत्म कर बैठे.
इन की आत्महत्याओं की वजह चाहे जो भी रही हो, मगर एक सवाल जरूर छोड़ जाती हैं कि आज का युवा इतना कमजोर क्यों है. आज सिर्फ बौलीवुड ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र चुनौतियों से भरा हुआ है. नैक टु नैक कंपीटिशन का जमाना लद गया अब तो हैड टु हैड कंपीटिशन का जमाना है. जब
क्षेत्र चुनौती भरा है तो लड़ने का हौसला भी रखना चाहिए.
हजारों लड़कियां पहुंचती हैं मुंबई
स्क्रीन पर किसी फिल्म को देख कर बहुत सी गर्ल्स उन किरदारों में खुद को फिट कर देती हैं. जेहन में ख्वाहिशें पनपने लगती हैं. हर साल हजारों लड़कियां ऐक्ट्रैस बनने का सपना ले कर छोटे शहरों से मुंबई पहुंचती हैं. कुछ को ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में ऐंट्री मिल जाती है, लेकिन फिल्मी दुनिया में खुद को आजमाना कई लड़कियों के लिए एक बुरा सपना बन कर रह जाता है.
कई बार तो ऐसा भी होता है कि 1 या 2 फिल्मों में काम करने के बाद ही कैरियर चौपट हो जाता है. ऐसे में ग्लैमरस और शोहरत की आदी हो चुकी अभिनेत्रियां डिप्रैशन की शिकार भी हो जाती हैं. कई लड़कियों को कास्ंिटग एजेंट्स और डाइरैक्टर्स द्वारा यौन शोषण का सामना भी करना पड़ता है, लेकिन कैरियर को बचाने के लिए ये अभिनेत्रियां अपनी आपबीती नहीं बताती हैं. क्योंकि उन्हें फिल्में छिनने से ले कर बायकौट होने तक का भी खतरा रहता है.