एक समय था जब कढ़ाई बुनाई करना महिलाओं के व्यक्तित्व का एक जरूरी हिस्सा हुआ करता था. महिलाएं अपना चूल्हाचौका समेटने के बाद दोपहर में कुनकुनी धूप का सेवन करते हुए स्वैटर बुनने बैठ जाती थीं. गपशप तो होती ही थी, साथ ही एकदूसरे से डिजाइनों का भी आदानप्रदान हो जाता था. तब घर के हर सदस्य के लिए स्वैटर बुनना हर महिला का प्रिय शगल होता था.
मगर आज की युवा पीढ़ी ने तो निटिंग जैसी कला को गुडबाय ही कह दिया है. कौन पहनता है हाथ से बुने स्वैटर’, ‘यह ओल्ड फैशन ऐक्टिविटी है’ जैसे जुमलों ने महिलाओं को हाथ से बनाने की कला को दूर कर दिया है. पर इन सब जुमलों के बावजूद मैं ने निटिंग के प्रति अपना दीवानापन नहीं छोड़ा. उस दुनिया से छिपा कर बुनती रही, जो इस कला को ओल्ड फैशन मानती है.
आश्चर्य तो तब हुआ जब मैं ने जरमनी की यात्रा के दौरान अपनी हवाईयात्रा में एक जरमन महिला को मोव कलर के दस्ताने बुनते देखा. फिर वहां मैट्रो में कुछ महिलाओं को निटिंग करते देखा. वहां एक स्टोर में जाने का मौका मिला तो पाया कि लोग किस कदर हाथ से बुने स्वैटर पहनने के इच्छुक हैं. वे स्टोर में रखी किताबों में से स्वैटर की डिजाइनें ढूंढ़ कर वहां बैठी महिलाओं को और्डर दे रहे थे. मुझे यह जान कर अच्छा लगा कि इस भौतिकवादी देश में भी लोग हैंडमेड चीजों के प्रति आकर्षित हैं.
विदेशों में है निटिंग का क्रेज
हाल ही में मैं ने अमेरिका की यात्रा की तो निटिंग संबंधी स्टोर देखना मेरे पर्यटन में शामिल था. बोस्टन शहर की ब्रौड वे गली में ‘गैदर हेयर’ नामक एक स्टोर है. जैसा नाम वैसा ही पाया मैं ने. अंदर का नजारा कलापूर्ण तो था ही गैदर हेयर जैसा भी था. एक बड़ी गोल टेबल के पास घेरे में 8 महिलाएं सलाइयां ले कर जुटी थीं. सब सीखने के मकसद से आई थीं. सोफिया ने बताया कि वह अपने भाई के लिए टोपी बुन रही है. लारा अपने बेटे के लिए जुर्राबें बुन रही थी. उन महिलाओं में एक मांबेटी का भी जोड़ा था. उन से संवाद करने पर पता चला कि वे महीने के दूसरे मंगलवार और चौथे बृहस्पतिवार को यहां इकट्ठा होती हैं. यहां वे एकदूसरे से डिजाइन सीखतीसिखाती हैं और अपनी कला को निखारती हैं.