कुशलता से कोई भी किया गया कार्य सफलता का मूलमंत्र होता है. हम और हमारा मन दोनों एक हो जाते हैं, तब जो कार्य होता है वह गुणात्मक दृष्टि से बेहतर होता है. यह तभी संभव हो पाता है जब हम अपने प्रति वफादार होते हैं. सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है, धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, हम उसे पढ़ते हैं, फिर भी सिगरेट जला लेते हैं. सूचना का भंडार ज्ञान नहीं होता है. ज्ञान का जन्म अनुभव की जमीन पर होता है. यह तभी संभव हो पाता है जब हम अपनेआप से प्यार नहीं करते हैं. अपनेआप के प्रति, अपने शरीर के प्रति, अपने मन के प्रति जिम्मेदार नहीं होते हैं. शरीर के प्रति सजगता ही सकारात्मक सोच के प्रति उत्साह जगाती है.
अब तक जाना गया है-अपनेआप को दुखी बनाए रखें या प्रसन्न रहें, यह आप के ही हाथ में है. मेरी प्रसन्नता जब तक बाहरी दुनिया के हाथों में होगी, मैं दुखी ही रहूंगा. बाहर जो घटता है वह निरंतर बदल रहा है. कभी मेरे अनुकूल घटता है, तो कभी मेरे प्रतिकूल. कभी मैं खुश हो जाता हूं तो कभी दुखी. हर घटना मेरी अपेक्षा के अनुसार नहीं घटती, उसे जैसे घटना था वैसे ही घटता है. मेरा सारा प्रयास बाहर जो घट रहा है, उसे बदलने के लिए होता है. ‘तो क्या मैं प्रयास करना छोड़ दूं?’ ‘नहीं, मैं जो प्रयास कर रहा हूं उस के अनुकूल कुछ होगा, प्रतिकूल भी घट सकता है या तीसरा कुछ भी घट सकता है.’ मुझे हर परिस्थितिका सामना करने के लिए तैयार रहना होगा. काम तो करना ही है. जब तक शरीर है, उसे क्रियाशील रखना है.