‘‘बहुत हो गई पढ़ाई. जितना चाहा उतना पढ़ने दिया, अब बस यहीं रुक जा. आगे और उड़ने की जरूरत नहीं. बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया है. खूब पैसा है, फैमिली बिजनेस है. लड़का कम पढ़ा-लिखा है तो क्या हुआ, दोनों जेबें तो हरदम भरी रहती हैं उसकी।’’ पिता के तेज स्वर से पल भर को कांपी निम्मी ने अपनी हिम्मत जुटाते हुए कहा, ‘‘पर पापा, मैं नौकरी करना चाहती हूं. इतनी पढ़ाई शादी करके घर बैठने के लिए नहीं की है. और नौकरी कोई पैसे कमाने का लक्ष्य रखकर ही नहीं की जाती, अपनी काबीलियत को निखारने और दुनिया को और बेहतर ढंग से जानने-समझने के लिए भी जरूरी है. मैं जब तक कमाने नहीं लगूंगी, शादी करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहती. अच्छा होगा आप मुझ पर दबाव न डालें. मैं मां की तरह हर बात के लिए अपने पति पर निर्भर नहीं होना चाहती, फिर चाहे वह कितने ही पैसेवाला क्यों न हो. और एक बात नौकरी करना या खुद कमाना उड़ना नहीं होता, आत्मसम्मान के साथ जीना होता है.’’ निम्मी की बात सुन उसके पापा को आघात लगा, पर वह समझ गए कि निम्मी उनकी जिद के आगे झुकने वाली नहीं, इसलिए शादी के प्रकरण को उन्होंने वहीं रोकने में भलाई समझी.
टूटे सपनों से खुशी नहीं मिलती
निम्मी तो अपने सपनों को पूरा कर पाई, पर कितनी लड़कियां हैं जो ऐसा कर पाती हैं? उन्हें मां-बाप की जिद के आगे हार मानकर शादी करनी पड़ती है, जबकि वे खुद कमा कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं. शादी के बाद अपने टूटे सपनों के साथ जीते हुए वे न खुद खुश रह पाती हैं, न ही पति को खुशी दे पाती हैं.