जब मिस वर्ल्ड का ताज किसी प्रतियोगी से सिर्फ एक प्रश्न दूर हो और उस प्रश्न के जवाब में प्रतियोगी एक मां को सब से ज्यादा सैलरी पाने का हकदार बताए और साथ ही मां की गरिमा को और बढ़ाते हुए यह भी कहे कि मां के वात्सल्य की कीमत कैश के रूप में नहीं, बल्कि आदर और प्यार के रूप में ही अदा की जा सकती है और जब उस के इस जवाब पर खुश हो कर विश्व भी अपनी सहमति की मुहर लगा कर उसे ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ मानते हुए ‘मिस यूनिवर्स’ का ताज पहना देता है तो यकीनन उस की कही बात उस के ताज की ही तरह महत्त्वपूर्ण हो जाती है.
मानुषी छिल्लर के जवाब से शतप्रतिशत सहमत होने में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है. सचमुच मां का काम अतुल्य है. एक मां एक दिन में ही अपने बच्चे के लिए आया, रसोइया, धोबी, अध्यापिका, नर्स, टेलर, मोची, सलाहकार, काउंसलर, दोस्त, प्रेरक, अलार्मघड़ी और न जाने ऐसे कितने तरह के कार्य करती है, जबकि घर से बाहर की दुनिया में इन सब कार्यों के लिए अलगअलग व्यक्ति होते हैं.
एक विलक्षण शक्ति
मां बनते ही मां के कार्यक्षेत्र का दायरा बहुत विकसित हो जाता है, किंतु निश्चित रूप से मां को ‘संपूर्ण और सम्माननीय मां’ उस के वे दैनिक कार्य नहीं बनाते, बल्कि एक मां को महान उस की वह आंतरिक शक्ति बनाती है, जो उसे एक ‘सिक्स्थ सैंस’ के रूप में मिली होती है, जिस के बल पर मां बच्चे के अंदर इस हद तक समाहित हो जाती है कि अपने बच्चे की हर बात, हर पीड़ा, हर जरूरत, उस की कामयाबी और नाकामयाबी हर बात को बिना कहे केवल उस का चेहरा देख कर ही भांप लेती है.