अगर रोबोट का मतलब आपके लिए एक कंप्यूटराइज्ड मशीन भर है तो जरा रोबोटिक्स के विशेषज्ञ प्रो. केविन वारविक की सुनिए ‘सन 2050 तक रोबोट इतने तेज दिमाग और कल्पनाशील हो जायेंगे कि फुटबाल की विश्व चैम्पियन टीम को हरा देंगे.’ जी, हां सुनने में यह भले अभी मजाक जैसे या हैरान करने वाली बात लग रही हो. लेकिन जिस तरह रोबोटिक्स के क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है उसे देखते हुए यह भविष्यवाणी असंभव नहीं लग रही.
गौरतलब है कि आइरिश मूल के वारविक वह इंसान हैं जिन्होंने 1998 में दुनिया के पहले सायबोर्ग यानी मशीनी मानव बनने की तरफ गंभीरता से कदम बढ़ाया था. क्योंकि उन्हीं का ही नहीं बल्कि रोबोटिक्स के कई दूसरे विशेषज्ञों का भी मानना है कि कृत्रिम बुद्धि वाली मशीनें भविष्य में इंसान से बेहतर और तीव्रतर सोचेंगी. ये विशेषज्ञ भयावहता की तस्वीर यहीं तक नहीं खींचते बल्कि इनके मुताबिक इन मशीनों के समक्ष इंसान की हैसियत आज के चिम्पैंजियों जैसी हो जायेगी. इसलिए इनका सुझाव है कि इंसान को जल्द से जल्द तकनीक फ्रेंडली रवैय्या अपना लेना चाहिए. क्योंकि जिन्हें हम मात नहीं दे सकते उनसे दोस्ती कर लेने की यह सीख पुरानी है.
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कृत्रिम बुद्धि, मशीनी मानव या सायबोर्ग ने अगर भविय के बारे में सोचते ही एक साथ भय और रोमांच की झुरझुरी पैदा कर देते हैं तो इसकी बुनियादी वजह हैं रोबोट. सन 1920 में चेक साहित्यकार द्वारा अपने उपन्यास ‘रोजोम्स यूनिवर्सल रोबोट्स’ यानी आरयूआर में पहली बार रोबोट शब्द का इस्तेमाल किया गया. कल्पित रोबोट का चेक भाषा में मतलब है, बंधुआ मजदूर. किसी भी विज्ञान फंताशी की तरह इस नाटक में भी कल्पना की गई थी कि इंसान द्वारा बनाए गए मशीनी मानव रोबोट एक दिन आदमी के विरुद्ध ही विद्रोह कर देते हैं.