महानगर में रहने वाली अधेड़ मानसी मध्यवर्गीय गृहिणी है. अपने फक्कड़ प्रोफैसर पति की सीमित आमदनी से उस की और घर की जरूरतें तो जैसेतैसे पूरी हो जाती हैं, लेकिन इच्छाएं और शौक पूरे नहीं होते. पैसों की तंगी अकसर इतनी रहती है कि वह अपनी 8 वर्षीय बेटी के स्कूली जूते भी फटने पर तुरंत नहीं खरीद पाती. इस के बाद भी उसे अपने सीधेसादे पति से कोई शिकवाशिकायत नहीं.
मगर मन में जो असंतुष्टियां पनप रही थीं वे उस वक्त उजागर होती हैं जब अपनी एक परिचित के जरीए वह पैसा कमाने की गरज से शौकिया देह व्यापार करने लगती है. सोचने में यह बेहद अटपटी सी बात लगती है कि सिंदूर से लंबी सी मांग भरने वाली एक भारतीय नारी यह तथाकथित गंदगी भरा रास्ता पैसा कमाने के लिए चुनेगी. वह भी खासतौर से 90 के दशक में जब सामाजिक खुलापन, उदारता या आजादी आज के मुकाबले 25 साल पिछड़े ही थे.
1997 में मशहूर निर्मातानिर्देशक बासु भट्टाचार्य ने एक ऐसी बात ‘आस्था’ फिल्म के जरीए कहने का जोखिम उठाया था जिसे उम्मीद के मुताबिक दर्शकों ने पसंद नहीं किया था, लेकिन कोई बात तो थी ‘आस्था’ में जो लोग उसे एकदम खारिज भी नहीं कर पाए थे और न ही असहमत हो पाए थे.
मानसी की भूमिका में रेखा ने जितनी गजब की ऐक्टिंग की थी उतनी ही अमर के रोल में ओम पुरी ने भी की थी. अभावों से जू?ाते मिडल क्लास पतिपत्नी के तमाम तरह के द्वंद्व उजागर करती इस फिल्म की एक अहम बात सैक्स उन्मुक्तता भी थी. मिस्टर दत्त के रोल में नवीन निश्छल थे जो मानसी के ग्राहक हैं. उन से मानसी की आर्थिक जरूरतें तो पूरी होने लगती हैं, लेकिन हैरतअंगेज तरीके से सैक्स संबंधी जरूरतें कई जिज्ञासाओं के साथ सिर उठाने लगती हैं. असल में दत्त सैक्स के मामले में काफी प्रयोगवादी और सब्र वाला मर्द है. वह मानसी पर भूखे भेडि़ए की तरह टूटता या ?ापटता नहीं है बल्कि बेहद कलात्मक ढंग से सैक्स करता है.