गृहशोभा का जुलाई (प्रथम), 2014 ‘मौनसून स्पैशल’ बहुत ज्ञानवर्धक रहा. इस का शीर्ष लेख ‘बचें यौन बंधक बनने से’ अहम जानकारी से रूबरू कराता है.आज स्त्री सुरक्षा के लिए काफी होहल्ला मचा रहता है, पर यौन बंधक बना कर औरतों को प्रताडि़त करने के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. जो स्त्रियां, किशोरियां, युवतियां इस कंटीले रास्ते में लहूलुहान होती हैं, इस के दर्द को वही जानती हैं. यौन शोषण करने वाले ये दरिंदे भोलीभाली स्त्रियों को पूर्वनियोजित योजनानुसार अपने जाल में फंसाते हैं.
यौन बंधक बना कर शारीरिक, मानसिक शोषण करने वाले इन राक्षसों से बचाव के लिए यह जानकारी सचमुच प्रशंसनीय है.
-डा. पूनम पांडे, राजस्थान
गृहशोभा का ‘मौनसून स्पैशल’ लाजवाब रहा. महिलाओं की संपूर्ण पत्रिका गृहशोभा हमें विविध क्षेत्रों की नवीनतम जानकारी से अवगत कराते हुए जिंदगी जीने की कला सिखाती है.
इस अंक में प्रकाशित लेख ‘हम दो हमारा एक भी नहीं’ बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करता है. अपने स्वार्थ के लिए कहें या फिर महंगाई के चलते हम 1 से ज्यादा बच्चों का पालनपोषण करने में असमर्थ हैं. ऐसे में बूआ, काका, मामा, मौसी आदि का नामोनिशान मिट जाएगा.
संयुक्त परिवार तो एक इतिहास बन कर रह जाएगा. जब बच्चों का कोई भाईबहन ही नहीं होगा तो ये रिश्ते खत्म हो जाएंगे, आज की पीढ़ी के पास यह सोचने तक का समय नहीं है.
-चंद्र कला बेगवानी, पश्चिम बंगाल
गृहशोभा का जुलाई (प्रथम) 2014 ‘मौनसून स्पैशल’ बहुत पसंद आया. संपादकीय टिप्पणी ‘मानवता की लूट’ मन को झंकृत कर गई.
मानवता पर तेजाब फेंकते ये लुटेरे अस्पतालों, मंदिरों जैसी जगहों को भी नहीं बख्शते. इन की खुद की संवेदना तो मर ही चुकी होती है, ये दूसरों का दर्द महसूस करने वालों की संवेदना को भी मारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मंदिरों में 5-5 सौ रुपए दे कर दर्शन करने वालों की भी कोई कमी नहीं है. अगर इंसान कोई गलत काम न करने, किसी का दिल न दुखाने की ठान ले तो इस से बड़ा परोपकार और कोई नहीं.