धन्यवाद सर्वोच्च न्यायालय. आप ने सैकड़ों नहीं लाखों परिवारों को केवल एक निर्णय से उजड़ने से बचा लिया है. आप ने देश के कानूनों में से सब से ज्यादा दुरुपयोग किए जाने वाले दहेज कानून के आतंकी शूलों को कुंद कर दिया है, जिस से पतिपत्नी विवादों में धौंस व धमकियों की जगह अब मानमनौअल, सहजता, समरसता और सहनशीलता को मिल सकती है.
भारतीय दंड विधान की धारा 498 ए, जिस के अंतर्गत कोई भी पत्नी ससुराल वालों द्वारा दहेज मांगने पर पुलिस में शिकायत कर सकती है, सामाजिक कानूनों में सब से ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है. इस के तहत मिले अधिकार के बल पर लाखों औरतों ने अपने पतियों को ही नहीं, उन के मातापिता, भैयाभाभी, बहनबहनोई, भतीजों, दादादादी आदि को भी पुलिस की गिरफ्त में पहुंचा दिया. छोटे से पारिवारिक विवाद पर दियासलाई से घर जलाने का काम इस कानून की 2 पंक्तियों ने किया है.
सर्वोच्च न्यायलय ने अभी सिर्फ यह कहा है कि कोई पुलिस अधिकारी इस प्रावधान में की गई शिकायत पर तब तक गिरफ्तारी नहीं करेगा जब तक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के दिए गए निर्देश पूरी तरह लागू न हो जाएं. ये निर्देश किसी भी व्यक्ति को तभी पकड़ कर जेल भेजने का हक देते हैं, जब अन्य बातों समेत उस व्यक्ति के भाग जाने का डर हो.
पुलिस ने इन निर्देशों की जम कर अवहेलना की और हर शिकायत पर पूरे परिवार को बंद कर डाला. वह भूल गई कि इस कदम के बाद पतिपत्नी कभी दोबारा न मिल सकेंगे, एक छत के नीचे न रह पाएंगे.