मुग्धा को अच्छी तरह याद था कि कुछ वर्ष पहले ही कैसे हंसी-खुशी उसने अपनी बेटी सुगंधा की 19वीं सालगिरह मनाई थी. अपनी इस लाड़ली बेटी को देख-देख मुग्धा फूली न समाती थी. उसका ऊंचा कद, गौरवर्ण मुख और ऊंचे कान्वेंट स्कूल की शिक्षा. मुग्धा को लगता अपनी सर्वगुण संपन्न इस पुत्री के लिए कैसे अच्छा घर-वर ढूंढेगी. ब्याह कर जब वो चली जायेगी तो वह कितनी अकेली हो जाएगी. ऐसी ही न जाने कितनी कल्पनाओं के समुद्र में मुग्धा डूबती-उतरती रहती.
सुगंधा का घूमना फिरना, दोस्तों के साथ उसका पार्टियों में जाना उसे कभी नागवार न गुजरा. उसे लगता कि आजकल के माहौल में ये नार्मल ही है और यदि वह सुगंधा पर ज्यादा रोकटोक लगाएगी तो हो सकता है वो विद्रोही हो जाए या उससे नाराज हो जाए. प्यारी बेटी की नाराजगी और उसकी उदासी उसे कुछ पल के लिए भी असहनीय लगती. वह उसकी हर चाहत को पूरी करती.
12वीं क्लास में सुगंधा के खूब अच्छे नंबर आए. वह फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करना चाहती थी. दिल्ली के नामी इंस्टिट्यूट में उसे दाखिला भी मिल गया. भारी- भरकम फीस देकर भी बेटी को उसकी मनवांछित शिक्षा दिलाने में मुग्धा और उसके पति नीलेश ने रत्ती- भर भी कंजूसी न की.
दोनों स्वयं उसे दिल्ली में रहने की व्यवस्था कराकर आए. उसकी आवश्यकता की हर चीज का इंजताम करवाया. महीने का लगभग 20,000 का तो उसका खर्चा ही था, ऊपर से लाखों की उसकी साल भर की फीस. फिर भी मुग्धा और नीलेश कभी बेटी को यह एहसास न होने देते कि किस तरह अपनी बचत और अपनी मासिक आमदनी का एक बड़ा हिस्सा उसकी शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं.