आजकल अधिकतर युवतियां और महिलाएं कामकाजी हैं. जरूरी नहीं कि हर जगह महिला बौस ही हों, अधिकांश कंपनियों और औफिसों में पुरुष ही बौस होते हैं. कुछ बौस ऐसे भी हो सकते हैं जिन की युवतियों को ले कर नियत खोटी होती है और वे येनकेनप्रकारेण उन्हें अपने जाल में फंसाने की कोशिश करते हैं. यदि आप को अपने बौस पर जरा भी संदेह हो तो उन से संभल कर रहने में ही भलाई है.
कुछ बौस अपने पद का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. वे शुरुआत करते हैं युवतियों के प्रति सहानुभूति जताने से. वे युवतियों की हर समस्या बड़े ध्यान से सुनते हैं तथा उसे हल करने का आश्वासन दे कर उन का विश्वास जीतने का प्रयास करते हैं. कंपनी के नियमों, प्रावधानों के विपरीत जा कर वे उनकी मदद करते हैं.
यह मदद आर्थिक या अतिरिक्त साधन, सुविधाएं उपलब्ध कराने की हो सकती है. इस का उद्देश्य युवतियों के दिल में अपने लिए जगह बनाना होता है, जबकि उन के मन में फरेब होता है. वे महिलाकर्मी की बारबार मदद कर, उसे अपने एहसान तले दबाने की कोशिश करते हैं. फिर वे अपना असली रंग दिखाना शुरू करते हैं उस से नजदीकियां बढ़ा कर. महिलाकर्मी चाह कर भी विरोध नहीं कर पाती और न ही अपने पिता या पति को इस संबंध में बता पाती है. बौस इसी बात का फायदा उठाते हैं.
कुछ बौस ऐसे भी होते हैं जो प्रमोशन में जानबूझ कर औफिस में काम करने वाली युवतियों को वरीयता या प्राथमिकता देते हैं, भले ही वे उस की पात्र न हों. इस के लिए अनुचित व अनैतिक शर्तें भी रख सकते हैं. यदि युवती इनकार करती है तो उस का प्रमोशन रोक दिया जाता है. यदि वह बौस की बात मान लेती है तो उस की तरक्की होते देर नहीं लगती.