इंसान के जीवन में जन्म से ले कर मृत्युपर्यंत 16 संस्कारों की बात की जाती है. विवाह को इन में सर्वश्रेष्ठ करार किया गया है. रूढिवादी सोच वाले मानते हैं कि शास्त्रसम्मत विधिवत विवाह संपन्न होने पर ही व्यक्ति का दांपत्य बिना किसी अवरोध के व्यतीत होगा वरना मुसीबतें गले पड़ती रहेंगी. उन के मुताबिक विवाह मोक्षप्राप्ति का साधन भी है और इसीलिए दांपत्य की बुनियाद धार्मिक अंधविश्वासों की नींव पर रखी जानी चाहिए ताकि किसी भी अनिष्ट की आशंका के खौफ से बचा जा सके.
अंधविश्वास यानी बगैर सोचेसमझे किया जाने वाला विश्वास या बेतुकी बातों पर टिका मत जिसे परंपरागत रिवाजों के नाम पर स्वीकृति मिली होती है. अज्ञानजनित, अविवेकपूर्ण अंधविश्वास से भरी मान्यताएं पारलौकिक शक्तियों के रुष्ट होने के खौफ के साथ स्वीकार की जाती हैं. जाहिर है, सदियों से लोगों द्वारा पोषित इन अंधविश्वासों ने विवाह को भी अपनी चपेट में ले रखा है.
सब से पहले ज्योतिषी वर और कन्या की जन्मपत्री देखते हैं और अष्टकूट मिलान मंगलदोष, विषकन्या आदि योगों का विश्लेषण कर के अपना फैसला सुनाते हैं कि इस शख्स से शादी करना उचित होगा या नहीं. अष्टकूट मिलान के तहत तारागुण, वशीगुण, गण गुण, नाड़ी गुण, वर्ण गुण, भकूट गुण, योनि गुण और गृह गुण चक्र का मिलान किया जाता है. इसी तरह मांगलिक दोष पर भी गंभीरता से विचार किया जाता है.
विवाह में मंगल द्वारा अमंगल की मान्यता
हिंदू ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक यदि मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित हो तो मंगलदोष माना जाता है. किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में यह योग हो तो उसे मंगली कहा जाता है. वरवधू में से किसी एक की कुंडली में इन भावों में मंगल हो तथा दूसरे की कुंडली में न हो तो ऐसी परिस्थिति को वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा जाता है तथा ज्योतिषी उन दोनों को विवाह न करने की सलाह देते हैं.