मदर्स डे जब से भारतीय शहरी परिवारों में भी सेलिब्रेट होने लगा है तब से इस दिन के आते ही सोशल मीडिया से लेकर ट्रेडिशनल मीडिया तक में हर जगह माँ का गुणगान शुरू हो जाता है. क्या आम क्या खास. ज्यादातर लोग इस दिन अपनी माओं को बड़े पूजा भाव से याद करते हैं.सेलेब्रिटीज तो खास तौरपर अपनी माओं को धन्यवाद के सुर में, कृतार्थ होने के अंदाज में याद करते हैं. लेकिन सब नहीं तो यही ज्यादातर लोग बाकी दिनों में माँ को मशीन की तरह अपने लिए खटने देते हैं. तब उन्हें उनका जरा भी ख्याल नहीं आता.आदर का यह दैविक अंदाज बहुत खराब है.इसमें एक किस्म से तथाकथित हिन्दुस्तानी होशियारी छिपी है कि जिसकी अनदेखी करनी हो उसकी पूजा शुरू कर दो.
अगर वास्तव में हम अपनी मां को बहुत प्यार करते हैं और जाहिर है करते हैं, तो हम इस बात का संकल्प लें कि भले हम अपनी मां की पूजा न करें लेकिन उसे मशीन की तरह अपने लिए अकेले नहीं खटने देंगे.तमाम घरेलू कामकाज में उसकी मदद करेंगे. मां के कामों में हाथ बंटाने का संकल्प किसी भी मदर्स डे के लिए मां को हमारा बेस्ट गिफ्ट होगा. सवाल है ये सब कैसे होगा या हो सकता है आइये देखते हैं.
1. बच्चों की इस नवाबियत के हम भी हैं जिम्मेदार
तमाम बच्चे कोई काम करना तो दूर खुद उठाकर एक गिलास पानी तक नहीं पीते.उनको यह काम बहुत मुश्किल काम लगता है.आखिर क्यों ? क्योंकि हम उन्हें कभी ऐसा सिखाते नहीं.लड़कों को तो खास तौरपर.लड़के अपनी तरफ से घर का कोई कामकाज करने भी लगें और धोखे से उसमें कोई ऐसा काम शामिल हो जो अक्सर महिलायें करती हैं तो ज्यादातर घरों में छूटते ही कहा जाएगा, ‘क्या जनानियों वाले काम कर रहा है.दरअसल हमारे यहाँ लड़कों और लड़कियों कि परवरिश ही ऐसी की जाती है कि वह एक खास तरह की कंडीशनिंग में ढल जाते हैं. जबकि पैरेंटिंग कि समझ कहती है कि घर के काम को बच्चों के से करवाकर हम उनमें जिम्मेदारी का अहसास विकसित कर सकते हैं.