बिहार सरकार ने शराबबंदी कर के एक अच्छा कदम उठाया है. शराब इस देश के गरीबों के लिए एक आतंक है, जिस से लोग आत्मघात करते हैं. जो पीते वे मरते हैं या फिर लुटते हैं पर साथ ही पूरे घर वालों खासतौर पर औरतों को भी नर्क में धकेल देते हैं. शराबी की पत्नी या शराबी की बेटी होना भी उतना ही बड़ा कहर है जितना आतंकवादी की गोली का शिकार होना.
शराब धीमा जहर ही नहीं है. जहर तो सिर्फ पीने वाले को ही नष्ट करता है, पर शराब तो पूरे घरपरिवार को कठघरे में खड़ा करती है. नए पैसे वाले भले यह कहते रहें कि सोशल ड्रिंकिंग तो आधुनिकता का एक रूप है, जो आप के बंधनों को खोलती है पर सच यह है कि यह ऐंटीसोशल है, क्योंकि हर ड्रिंक पार्टी में 1-2 ऐसे निकल आते हैं, जो बहक जाते हैं और अनापशनाप बकने लगते हैं, उलटियां करने लगते हैं और यहां तक कि औरतों को भी छेड़ने लगते हैं.
सोशल ड्रिंकिंग कब किस हालत में दिमाग और शरीर पर चढ़ जाए कहा नहीं जा सकता और नीतीश कुमार ने दूसरे कई राज्यों के बुरे अनुभवों के बाद पूरी निष्ठा के साथ इसे लागू करने की ठान कर यह सिद्ध कर दिया है कि उन की निगाह केवल वोटों पर नहीं है. लालू प्रसाद यादव का इस मुद्दे पर साथ देना यह जताता है कि दोनों को शराब से मिलने वाले पैसे से ज्यादा लोगों की शांति व सेहत की चिंता है.
हां, अब कुछ अति जरूर हो रही है. एक नए संशोधन में कहा गया है कि जिस घर में शराब पकड़ी जाएगी वहां के सभी वयस्कों को जेल में डाल दिया जाएगा. समाज सुधार का यह तरीका गलत है. अगर सभी वयस्क जेल में होंगे, तो बच्चों की देखभाल कौन करेगा? क्या बूढ़े पिता को भी जेल में डाल दोगे जिस ने कभी शराब को हाथ तक न लगाया हो?