अपना महान देश अभी भी साधु, संतों, सपेरों और फकीरों का ही देश है जिन के बारे में आम धारणा यह है कि ये लोग जो भी करते हैं जनता के भले के लिए करते हैं. इस भले के लिए वे त्याग, तपस्या करते हैं और वस्त्र तक त्याग देते हैं. महात्मा गांधी इस लोकतांत्रिक फकीरी शृंखला की आखिरी कड़ी थे.

इधर, चाय वाले की छवि धुंधली पड़ने लगी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुरादाबाद की परिवर्तन रैली में खुद को फकीर घोषित कर दिया. सूटबूट वाले इस शाही फकीर का फलसफा समझने वाले लोग अब शोध तक करने लगे हैं जो फैसले पहले लेता है, फिर बाद में उन की औचित्यता सिद्ध करने की बात करता है. उम्मीद नहीं है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोदी की शाही फकीरी ब्रैंड बन पाएगी. वजह, बारबार भेष बदलने वाले को चमत्कारी नहीं, बल्कि बहुरूपिया कहा जाता है जिस का काम भला करना कम, मनोरंजन करना ज्यादा होता है.

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