अवन्तिका को शुरू से ही नौकरी करने का शौक था. ग्रेजुएशन के बाद ही उसने एक औफिस में काम शुरू कर दिया था. उसकी सारी सहेलियां भी कहीं न कहीं लग चुकी थीं. अवन्तिका के माता-पिता खुले विचारों के थे. बेटी पर ज्यादा रोक-टोक उन्होंने कभी नहीं रखी. उनको पता था अवन्तिका एक जिम्मेदार लड़की है और कभी अपनी आजादी का गलत इस्तेमाल नहीं करेगी. अवन्तिका बहुत क्रियेटिव नेचर की थी. पेंटिग बनाना, डांस, गाना, मिमिक्री, बागवानी करना उसके शौक थे और इन खूबियों के चलते उसका एक बड़ा फ्रेंड्स-ग्रुप भी था. छुट्टी वाले दिन पूरा ग्रुप कहीं घूमने निकल जाता था, फिल्म देखता, पिकनिक मनाता या किसी एक सहेली के घर इकट्ठा होकर दुनिया-जहान की बातों में मशगूल रहता था. मगर शादी के चार साल के अन्दर ही अवन्तिका बेहद अकेली, उदास और चिड़चिड़ी हो गयी है. अब वह सुबह नौ बजे औफिस के लिए निकलती है, शाम को सात बजे घर पहुंचती है और लौट कर उसके आगे ढेरों काम मुंह बाये खड़े रहते हैं. तीन साल के बेटे अनुराग को देखना, पति के लिए चाय बनाना, फिर पूरे घर के लिए खाना बनाना, बूढ़े सास-ससुर को खिला कर पति को खिलाना, दौड़ते-भागते खुद का पेट भरना और इस बीच बच्चे को भी दुलारते रहना, बस यही जिन्दगी रह गयी थी उसकी. उसका हर दिन ऐसे ही गुजर रहा है. उसके पास समय ही नहीं होता है किसी से कोई बात करने का. अगर होता भी है तो सोचती है कि किससे क्या बोले, क्या बताए? इतने सालों में भी कोई उसको पूरी तरह जान नहीं पाया है, पति भी नहीं.