चेहरे पर सदैव सहजता और आत्मविश्वास रखने वाली राधिका अग्रवाल 2 बेटों की मां हैं. वे अपनी और्गेनाइजेशन को अपना तीसरा बच्चा मानती हैं. अपनी ‘गो टु मार्केट’ पहल के जरीए 5 साल से भी कम समय में इन्होंने अपने ब्रैंड को एक जानापहचाना नाम बनाने में सफलता हासिल की है. इन का पहला वैंचर 2006 में फैशन क्लूज के नाम से शुरू हुआ, जो एनआरआई महिलाओं का सोशल पोर्टल था. इस के बाद वर्ष 2011 में सिर्फ 10 लोगों की टीम के साथ एक बेसमैंट में शौपक्लूज की शुरुआत की. आज शौपक्लूज परिवार में 1200 से ज्यादा सदस्य हैं.
इस मुकाम तक पहुंचने के दौरान क्या कभी ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ा?
इस सवाल पर राधिका बताती हैं, ‘‘ग्लास सीलिंग महिलाओं के लिए एक मूक बाधा के तौर पर हर जगह मौजूद है. मैं ने भी अपने शुरुआती प्रयासों के दौरान इसे व्यापक रूप से महसूस किया. मेरे पुरुष सहसंस्थापक को मेरे मुकाबले ज्यादा तरजीह दी जाती थी. कंपनी से जुड़े सब से महत्त्वपूर्ण मामले उन पर केंद्रित होते थे. ‘‘हालांकि शौपक्लूज में हम इस असमानता को दूर करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं. संगठन में कई महिलाएं बड़े पदों पर कार्यरत हैं. मेरा मानना है कि यदि आप महिलाओं को स्वतंत्रता देते हैं तो वे साबित कर देती हैं कि उन में किसी भी सीमा को पार करने की क्षमता मौजूद है.’’ राधिका अग्रवाल अपनी सब से बड़ी ताकत अपने बच्चों और अपनी संस्था शौपक्लूज को मानती हैं. इन्हें बढ़ते और अच्छा करते देख उन्हें शक्ति मिलती है. वे कहती हैं कि शौपक्लूज कार्यालय में जाने और मुसकराते कर्मचारियों को देखने से मुझे लगातार काम करने की प्रेरणा मिलती है. राधिका मानती हैं कि सफल होने के लिए एक महिला के अंदर साहस और जनून का होना जरूरी है. लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत करने और निरंतर कार्य करते रहने की जरूरत है.