गलत वक्त किसी के जीवन में न आये, जो मेरे साथ हुआ, मेरा जन्म तो एक लड़के के शरीर में हुआ,लेकिन मेरी सोच, मेरी चाल-चलन सब लड़कियों जैसी थी, ये गलती मेरी नहीं थी, जिसे परिवार और समाज सहारा देने के बजाय घर से बेसहारा निकाल देते है, ऐसी ही भावनात्मक बातों को कहती हुई स्वर भारी हो गयी, भारत की ट्रांसजेंडर महिला,नव्या सिंह, जो भारत की पहली ट्रांसजेंडर महिला ‘ट्रांस क्वीन इंडिया’ की ख़िताब जीती है और अब वह ट्रांसक्वीन इंडिया की ब्रांड एम्बेसेडर है.
शुरू में नव्या के पिता सुरजीत सिंह, नव्या को लड़की नहीं मानते थे, वे बहुत एग्रेसिव थे, वे इसे भ्रम समझते थे, पर उनकी माँ परमजीत कौर को समझ में आ रहा था, लेकिन वह इसे कह नहीं पाती थी. नव्या कथक और बॉलीवुड डांसर भी है, जिसका प्रयोग उन्होंने मुंबई आकर किया.
काफी संघर्ष के बाद वह बॉलीवुड की एक डांसर, मॉडलिंग और अभिनेत्री बनी है और ट्रांसजेंडर समाज को मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिश कर रही है. वह एक हंमुख और विनय स्वभाव की है और हर कठिन घड़ी को जीना सीख किया है. दिव्या को गृहशोभा की ब्यूटी कॉलम पढना पसंद है, जिसमें अच्छी टिप्स ब्यूटी के लिए होती है. उसे गर्व है कि उसकी इंटरव्यू इतनी बड़ी पत्रिका में जा रही है.
उनसे बात हुई, आइये जाने उनके संघर्ष की कहानी उनकी जुबानी.
सवाल - आपकी जर्नी कैसे शुरू हुई?
जवाब – मैं बिहार के कटिहार जिले के गांव लक्ष्मीपुर काढ़ागोला की हूं. मैं सरदार परिवार की सबसे बड़ी लड़की हूं. पिछले 11 साल से मैं मुंबई में रह रही हूं. मैं एक ट्रांसजेंडर महिला हूं. मेरा जन्म एक गलत शरीर में हुआ था, मैं एक लड़के के शरीर में पैदा हुई और बहुत जल्दी मुझे पता चल गया था कि मेरा जन्म गलत हुआ है. 11 साल की उम्र में मुझे समझ में आ गया था की मेरी बनावट भाइयों से अलग है, मेरे भाई क्रिकेट खेलना पसंद करते थे, पर मुझे मेरी माँ का साथ अच्छा लगता था. मेरी माँ भी कुछ हद तक समझती थी. मैं गांव में पैदा हुई थी और वहां पुरुष प्रधान समाज था, औरतों को बोलने का अधिकार नहीं था. मेरे दादा कभी उस गांव के सरपंच हुआ करते थे. बचपन नार्मल ही गुजरा, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गयी,लोग प्यार न देकर मजाक उड़ाते थे. बाद में मुझे पता चला कि लोग मेरे हाव-भाव को देखकर मजाक उड़ाते है. करीब तीन साल तक मैंने ऐसे गुजारा फिर मुझे इससे आगे बढ़ने की इच्छा पैदा हुई.