80 के दशक में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमबीए करने वाले ग्राम बरोखरपुर, बाँदा जिला, उत्तरप्रदेशप्रेम सिंह ने शुरुआत में नौकरी की. कुछ दिनों बाद नौकरी से उनका मन भर गया और कुछ अलग करने की इच्छा हुई, तब उन्होंने25 एकड़ जमीन में खेती करने का संकल्प लिया और तब से लेकर आज तक खेती ही करते है. प्रेम सिंह जैविक खेती करते हैं और आसपास के सैकड़ों किसान उनसे खेती की तकनीक सीखने आते हैं और उन्हें अपनी उपज भी बेचते हैं. केवल देश से ही नहीं विदेश से भी उनकी इस जैविक खेती करने की कला को सीखने विदेशी भी आते है. वे अपनी इस सफलता से बहुत खुश है और चाहते है कि विश्व में आगे भी ऐसी खेती की जाय, ताकि किसी को भूखों न मरना पड़े और पर्यावरण संतुलन बनी रहे. उन्होंने खेती और उससे जुडी हुई कई बातों पर बातचीत की, आइये जानते है, कैसे प्रेम सिंह ने ऐसा कर दिखाया और आगे भी मॉडर्न और अधिक उन्नतखेती करने वाले है.
नहीं थी इच्छा पिता की
किसान प्रेम सिंह कहते है कि मैं ग्राम बरोखर खुर्द, बाँदा जिला, उत्तरप्रदेश का रहने वाला हूँ,साल 1987 में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद कुछ दिनों तक जॉब किया, लेकिन अंत में खेती करने का मन बना लिया. असल में नौकरी करने के बाद सफलता बहुत देर में प्रयास करने के बाद मिलती है. सैलरी भी अच्छी नहीं थी, लेकिन मुझे लगा कि नौकरी में परिवार को लेकर इधर से उधर भागना पड़ता है और मेरे पिता के पास खेत थी, तो मैंने समय बर्बाद न कर खेती की ओर गया. पिता चाहते नहीं थे कि मैं खेती करूँ, उनसे काफी दिनों तक मन-मुटाव चलता रहा, पर मैंने का 1987 से खेती का काम शुरू कर दिया.