हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के शाहबाद में एक गरीब परिवार में 4 दिसंबर, 1994 को जन्मी रानी रामपाल के पिता परिवार का पेट पालने के लिए टांगा चलाते थे. दिन भर में बमुश्किल 100 रुपए उन की कमाई होती थी जिस में पत्नी, 3 बच्चे, अपना और घोड़े का खाना जुटाना मुश्किल होता था. रानी के दोनों बड़े भाइयों ने जब होश संभाला तो पिता का हाथ बंटाने के लिए एक भाई ने एक दुकान में सेलसमैन की नौकरी कर ली और दूसरा बढ़ई बन गया.
पिता की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण रानी का स्कूल में एडमिशन बड़ी मुश्किल से हुआ. रानी स्कूल के मैदान में दूसरे बच्चों को हौकी खेलते हुए देखती थी. उस समय उन की उम्र सिर्फ 6 साल थी. हौकी का खेल उन्हें आकर्षित करती थी.
कभीकभी वे दूसरे बच्चों से हौकी स्टिक ले कर खेलने लगती थीं. धीरेधीरे हौकी पर उन का हाथ जमने लगा. स्कूल के बच्चे अकसर उन को अपने साथ खिलाने लगे.
पैसे की समस्या
एक दिन रानी ने अपने पिता से हाकी खेलने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन पिता राजी नहीं हुए. उस समय लड़कियों का हाफ पैंट पहन कर हौकी खेलना बहुत बड़ी बात थी. जिस लोकैलिटी में उन का परिवार रहता था वहां बेटियों का हाफ पैंट पहनने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था.
रानी के बहुत जिद करने के बाद उन के पिता ने रानी का दाखिला शाहाबाद हौकी ऐकैडमी में करवा दिया. एडमिशन तो मिल गया, लेकिन मुश्किल यह थी कि रानी के पिता के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वे उन की कोचिंग की फीस चुका सकें. कई बार भाइयों ने कुछ पैसे जमा कर बहन को दिए तो कभी पिता ने उधार ले कर फीस चुकाई. रानी ने इस कारण कई बार हौकी छोड़ने के बारे में सोचा. लेकिन जब पैसे की समस्या की बात उन के कोच बलदेव सिंह और कुछ सीनियर खिलाडि़यों के सामने आई तो उन्होंने रानी को समझाया और उन की आर्थिक मदद की.