युवाओं में बहुत प्रिय व्हाट्सऐप पर कोरोना के इलाज के आयुर्वेदिक उपचार थोक में मुफ्त मिल रहे हैं. जिन के पास 10-20 ग्रुप हैं वे अगर कोरोना और आयुर्वेद पर व्हाट्सऐपी नुस्खे लिखने शुरू करें तो 500 पेज का ग्रंथ तैयार कर सकते हैं. यह बात दूसरी है कि कोई उस ग्रंथ के 2 कौड़ी भी न दे क्योंकि सब जानते हैं कि आयुर्वेद छलावा है. हां, लोग फिर भी उस का गुणगान करते रहते हैं.
यह गुणगान असल में पंड़ों, पुजारियों, महंतों की देन है जो हरेक से बारबार कहना चाहते हैं कि आधुनिक तकनीक वाली हर चीज खराब है. यह बात दूसरी है कि यही बात उस मोबाइल पर हो रही है जिस में दुनियाभर की तकनीक का विज्ञान भरा है. ये महंतसंत हवाई बातें करते हैं, लेकिन रेडियो तक नहीं बना सकते, मोबाइल की बात दूर. कोरोना का इलाज आयुर्वेद से होने की बात ऐसी ही है जैसी कि हाथ के मैल से सोना निकालना.
ये भी पढ़ें- सोचशक्ति से दूर होती युवाशक्ति
इस बार कोरोना के फैलने के 2 केंद्र रहे- चुनाव व कुंभ. कुंभ जहां आयुर्वेद समर्थक अपने साथ एलोपैथिक दवाइयां थैलों में भर कर भी ले जाते हैं और प्रसाद के साथ फांकते हैं. कोराना अब बुरी तरह फैल रहा है और 10 अखाड़ों के महंत तो मर ही गए. सब की मौत अस्पतालों में हुई क्योंकि जब सांस फूलने लगी तो रामदेव की नाक के 2 सिलैंडर और विलोमासन काम नहीं आया, अस्पताल का आईसीयू याद आए, इन नशेडि़यों, भंगेडि़यों को बचाना आसान नहीं होता क्योंकि ये न जाने क्याक्या खाते रहते हैं. असली दवाएं इन पर कारगर ही नहीं होतीं. फिर इन के भक्त अस्पतालों के स्टाफ पर हावी हो जाते हैं. वे इलाज के साथ महंतजी के सामने पूजापाठ में भी लग जाते हैं.