लेखिका- प्रमिला उपाध्याय
तभी छोटा बंशी अपनी मां को ले कर आ पहुंचा. उसे देख कर कामिनी फिर सिसकने लगी, सुबकते हुए बोली, ‘‘देखो मौसी, मां की क्या हालत बना दी है बदमाशों ने.’’ बंशी की मां अवाक् हो कर मालती को देखते हुए बोली, ‘‘घबराओ नहीं, बेटी, जिस ने यह सब किया है उस की सजा उसे अवश्य मिलेगी.’’ बंशी की मां ने दमयंतीजी को देखते हुए प्रणाम किया तो वे बोलीं, ‘‘देखिए, मालती का ध्यान रखिएगा, और आप आज यहीं रह जाइए न. कामिनी को भी आप के रहने से अच्छा लगेगा और सहारा भी रहेगा. अच्छा, मैं अब चलती हूं. कल आने की कोशिश करूंगी.’’ बंशी की मां सिर हिलाते हुए बोली, ‘‘हांहां, मैं रह जाऊंगी. आप निश्ंिचत हो कर जाइए.’’ दूसरे दिन अखबार में ‘झारखंड समाचार’ पृष्ठ पर कम्मो थी. प्रोफैसर दीदी ने जब यह समाचार पढ़ा तो उन के रोंगटे खड़े हो गए. वे आज अपनी आंखों से देखना चाहती थीं कि डायन का आरोप लगा कर किस तरह बेसहारा, अनाथ महिलाओं पर अत्याचार किया व उन्हें प्रताड़ना दी जाती है व कई तरह के अमानवीय व्यवहार किए जाते हैं. यहां तक कि नंगा कर के पूरी बस्ती में घुमाया जाता है. वे मालती और कामिनी से मिलने अस्पताल पहुंचीं. मालती को होश आ गया था लेकिन दवा के असर से सो रही थी. अभी वे उन लोगों का हाल पूछ ही रही थीं कि दमयंतीजी भी 2 महिला साथियों को ले कर पहुंच गईं. सभी वार्ड के बाहर के बरामदे में बैंच पर बैठ गईं.
प्रोफैसर दीदी से उन की जानपहचान थी. आपस में अभिवादन के बाद पूरा हालचाल जानने के बाद सभी महिलाएं अस्पताल के बरामदे में लगी कुरसियों पर बैठ गईं. वे गिरीडीह के पौश इलाके के पढ़ेलिखे सभ्य लोगों के आवास के बगल में बसी इस बस्ती में इस तरह के जघन्य अपराध पर चिंता प्रकट करने लगीं. प्रोफैसर दीदी ने कहा, ‘‘दमयंतीजी, दोषियों को सजा दिलवाना हम महिलाओं का फर्ज बनता है. एक सीधीसादी, घरों में चौकाबरतन करने वाली विधवा और बेसहारा महिला को प्रताडि़त कर अधमरा कर देना घोर अपराध है.’’ ‘‘हांहां, जिस राजनीतिक दबंग, स्वयंभू नेता रूपचंद ने यह सब करवाया है उस ने बदले की भावना के तहत किया है. मैं ने पता कर लिया है, कई दिनों से कामिनी को बारगर्ल बनाने के लिए मुंबई भेजने के लिए वह मालती पर जोर डाल रहा था. उस के न कहने के बाद उस ने यह ओछी हरकत की है.’’