भूख के मारे लक्ष्मी की अंतडि़यां ऐंठी जा रही थीं. वह दिनभर मजदूरी के लिए इधरउधर भटकती रही, मगर उसे कहीं भी मजदूरी नहीं मिली.
आज शहर बंद था. वजह थी कि कल दिनदहाड़े भरे बाजार में सत्ता पक्ष के एक खास कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई थी.
इस हत्या के पीछे जो भी वजह रही हो, मगर इस से शहर की राजनीति गरमा गई थी. हत्यारा खून कर के फरार हो चुका था. दिनभर पूरे शहर में पार्टी वाले पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाते रहे.
सुबह जब लक्ष्मी शासकीय भवन पर मजदूरी करने गई थी, तब ठेकेदार के अलावा वहां कोई नहीं था.
उसे देख कर ठेकेदार मुसकराते हुए बोला, ‘‘लक्ष्मी, आज काम बंद है... कल आना.’’
‘‘क्यों ठेकेदार साहब?’’ लक्ष्मी ने पूछा.
‘‘पूरा शहर बंद है न इसलिए,’’ ठेकेदार ने जवाब दिया.
‘‘पर, आप ने काम क्यों बंद कर दिया ठेकेदार साहब?’’ लक्ष्मी ने फिर पूछा.
‘‘मुझे नुकसान कराना है क्या? और फिर जिस नेता का खून हुआ है, उस ने मुझे यह ठेका दिलवाया था, इसलिए मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उस की याद में एक दिन के लिए काम बंद कर दूं,’’ ठेकेदार ने बताया.
‘‘ठेकेदार साहब, बंद का असर आप पर तो नहीं पड़ेगा, मगर हमारे पेट पर जरूर पड़ेगा,’’ लक्ष्मी ने कहा.
‘‘तो मैं क्या करूं? मैं ने रोजरोज काम देने का ठेका नहीं लिया है. जा, कल टाइम पर आ जाना. आज जहां मजदूरी मिले, वहां जा कर कर ले,’’ ठेकेदार ने टका सा जवाब दे कर उसे वहां से भगा दिया.
लक्ष्मी निराश हो कर वहां से चल दी. फिर वह काम तलाशने उसी चौराहे पर आ गई, जहां रोज आ कर बैठती थी. वहां सारे मजदूर जमा होते थे और अपनी जरूरत के मुताबिक लोग वहां से उन्हें ले जाते थे. मगर लक्ष्मी को वहां पहुंचने में देर हो गई थी. सारा चौराहा मजदूरों से तकरीबन खाली हो चुका था.