लेखक- रमेश चंद्र छबीला
दोपहर के 2 बजे थे. शिवानी ने आज का हिंदी अखबार उठाया और सोफे पर बैठ कर खबरों पर सरसरी नजर दौड़ाने लगी. हत्या, लूटमार, चोरी, ठगी और हादसों की खबरें थीं. जनपद में ही बलात्कार की 2 खबरें थीं. एक 10 साला बच्ची से पड़ोस के एक लड़के ने बलात्कार किया और दूसरी 15 साला लड़की से स्कूल के ही एक टीचर ने किया बलात्कार. पता नहीं क्या हो रहा है? इतने अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? कहीं भी सिक्योरिटी नहीं रही. अपराधियों को पुलिस, कानून व जेल का जरा भी डर नहीं रहा. बलात्कार की खबरें पढ़ कर शिवानी मन ही मन गुस्सा हो गई. यह कैसा समय आ गया है कि किसी भी उम्र की औरत या बच्ची महफूज नहीं है. बच्चियों से भी बलात्कार. इन बलात्कारियों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए, जो ये भविष्य में ऐसे घिनौने अपराध करने के काबिल ही न रहें.
शिवानी की नजर दीवार पर लगी घड़ी पर पड़ी. दोपहर के ढाई बज रहे थे. अभी तक मोनिका स्कूल से नहीं लौटी थी? स्कूल से डेढ़ बजे छुट्टी होती है. आधा घंटा घर लौटने में लगता है. अब तक तो मोनिका को घर आ जाना चाहिए था. शिवानी के पति कमलकांत एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर थे. उन की 8 साला एकलौती प्यारी सी बेटी मोनिका शहर के एक मशहूर मीडियम स्कूल में तीसरी क्लास में पढ़ रही थी. पढ़ने में होशियार मोनिका बातें भी बहुत प्यारीप्यारी करती थी. शादी के बाद कमलकांत ने शिवानी से कहा था, ‘देखो शिवानी, हमें अपने घर में केवल एक ही बच्चा चाहिए. हम उसी को अच्छी तरह पाल लें, अच्छी तालीम दिला दें, चाहे वह लड़का हो या लड़की. यही गनीमत होगी. उस के बाद हमें दूसरे बच्चे की चाह नहीं करनी है.’