रिनी से खुशी संभाले नहीं संभल रही थी. वहां से सीधा मां के घर पहुंची और अम्मू से लिपट कर रो पड़ी, ‘‘अम्मू, मैं मां बनने वाली हूं, बहुत बड़ा लांछन मिटा है मेरे माथे से.’’
‘‘देखा बेटा, मैं ने कहा था न सुख तेरी राहों में जरूर बिछेंगे,’’ अम्मू ने भावविभोर हो कर कहा.
‘‘तभी रिनी को शेखर की दूसरी शर्त याद आ गई और उस की खुशियों पर ढेरों पानी पड़ गया. फिर जब उस ने वह बात अम्मू को बताई तो वह हंसने लगीं, ‘‘अरे बावली, अपनी औलाद किसे बुरी लगती है? देखना शेखर भी उतना ही खुश होगा जितना तू हो रही है.’’
‘‘नहीं अम्मू, आप नहीं जानतीं शेखर को,
मैं जानती हूं. वे इस बच्चे को नहीं आने देंगे,’’ रिनी ने उदासी भरे स्वर में कहा और फिर तुरंत फैसला किया कि वह अभी शेखर को कुछ नहीं बताएगी. अपनी इस अनमोल खुशी के रंग में जहर नहीं घोलना चाहती थी वह. हां, उस ने झट से शीतल चाची को फोन कर यह खबर दी तो वे खुशी से बोलीं, ‘‘तू इस समय पास होती तो मैं तेरा माथा चूमती... मेरा मन कर रहा है कि महल्ले भर में लड्डू बांटूं... और हां एक खबर मेरे पास भी है रिनी.’’
‘‘क्या चाची?’’
‘‘रंजन की वह नई दुलहन उसे छोड़ गई.’’
‘‘यह आप क्या कह रही हैं चाची?’’
‘‘शादी के 2 महीने बाद से ही पूरे घर में बच्चे की रट लगाने लगी तो वह अड़ गई कि मेरा और रंजन दोनों का चैकअप कराओ. हार कर उन्हें चैकअप कराना पड़ा. फिर जब रिपोर्ट आई तो पता चला पत्नी में तो मां बनने के सारे गुण हैं पर पति ही नपुंसक है. फिर क्या था. पत्नी रंजन को छोड़ गई.’’