भारतीयता के रंग में पूरी तरह रंग जाने की मीरा की व्याकुलता का
नतीजा था या सुजाता के निश्चिय का, यह कहना तो मुश्किल है. पर पहली बार बात होने से ले कर शादी तक के 3 महीनों में ही सुजाता ने क्या कुछ नहीं सिखा दिया मीरा को. उस का ‘नैमस्टे’ का उच्चारण देखतेदेखते ‘नमस्ते’ में बदल गया. उस से भी एक कदम आगे बढ़ कर बड़ों के पांव छू कर आशीर्वाद लेना उसे आ गया.
उसे पालथी मार कर फर्श पर बैठने में
कोई कष्ट नहीं होता था. पर घर के किन कमरों में जूते पहन कर आ सकते थे और किन में नहीं, यह बारीकियां भी वह जान गई थी. बड़ों को संबोधित करने में नाम के आगे ‘जी’ जोड़ना
उसे आ गया. केवल अंकल या आंटी नाम की लाठी से सारे चाचा, मामा, मौसा और बुआ, मौसी, चाची आदि को हांकने के बजाए उन उल?ा रिश्तेदारियों के अनोखे नामों को भी यह सम?ा गई.
लोकप्रिय हिंदी गाने भी उस ने सीख लिए और उसी के साथ यह भी सम?ा गई कि ‘मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए...’ वाला गीत.
साड़ी को उस ने जितना खूबसूरत परिधान सम?ा था उतना ही टेढ़ा काम उसे पहनना और संभालना होगा, इस का उसे लेशमात्र भी अंदाजा नहीं था. उस की हार्दिक इच्छा थी कि कम से कम शादी के दिनों में भारत में यह भारतीय कपड़े ही पहने पर डर लगता था तो साड़ी से.
सुजाता ने उसे आश्वस्त कर दिया कि विवाह के अवसर पर लहंगाचोली पहन कर और अन्य दिन शानदार कशीदाकारी वाले सलवारसूट की मदद से वह अपना शौक पूरा कर सकेगी. एकाध बार वह स्वयं साड़ी उसे पहना देगी.