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अकेले नन्ही बच्ची की जिम्मेदारी बिना किसी अच्छी नौकरी के कैसे उठाती? अधूरी सी जिंदगी कैसे जी पाती वह? पर पलक का कहना भी पूरी तरह गलत नहीं. क्या सचमुच वह स्वार्थी नहीं हो गई थी? अपना अधूरापन दूर करने और पुरुष के संबल की चाह में ही तो उस ने प्रकाश का साथ स्वीकारा और इस कोशिश में बच्चे की खुशियों की अनदेखी कर दी. यदि वह मजबूत होती तो प्रकाश की तरफ झुकाव नहीं होता. वह देर तक इसी उधेड़बुन में रही. और आज प्रकाश ने पहली दफा पलक पर हाथ उठाया था. क्या पता अब पलक की प्रतिक्रिया कैसी होगी? कहीं वह सचमुच घर छोड़ कर चली गई तो? जवान लड़की है, कुछ भी हो सकता है उस के साथ. नहींनहीं... उसे पलक को समझना पड़ेगा. पर कैसे? वह समझती कहां है? हालात और बिगड़ते जा रहे थे. क्या करे वह? क्या है समाधान? पूरा दिन उस ने बेचैनी में गुजारा. पलक को फोन किया तो मोबाइल औफ मिला चिंता से उस का सिर दुखने लगा.

शाम को प्रकाश आया तो उदास सा था. मेघा ने

उसे बताया कि पलक अब तक नहीं लौटी है. कहीं कुछ कर न बैठे... कहतेकहते उस की आंखों में आंसू आ गए.

प्रकाश बिना कुछ बोले अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया. मेघा बेटी को फोन करकर परेशान थी. रात 9 बजे पलक लौटी तो मेघा ने दौड़ कर उसे सीने से लगा लिया. पर पलक मेघा को खुद से अलग कर अपने कमरे में बंद हो गई. मेघा का मन कर रहा था चीखचीख कर रोए. इस घुटन भरी जिंदगी से वह आजिज आ गई थी.

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