यानी यह डर कि जाति के आधार पर भेदभाव किया तो आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है. पर विवाह संस्था आपराधिक मुकदमों के दायरे से बाहर रही. इसलिए अगर कुछ नहीं बदला तो वह है अंतर्जातीय विवाह पर सामाजिक प्रतिबंध. एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि तमाम सर्वेक्षणों में जिन लोगों ने अंतर्जातीय विवाह के संबंध में सकारात्मक उत्तर दिए हैं, वे भी समय आने पर अपने जीवन में जातिगत विवाह को ही प्राथमिकता देते हैं. यहां तक कि अमेरिका में लंबे समय से बसे भारतीय भी विवाह अपनी जाति में ही करना पसंद करते हैं."
"पापा, बहुसंख्यक वर्ग का कहा सत्य नहीं हो जाता. जाति और विवाह के नियम समाज द्वारा बनाए गए हैं. समाज जिसे बना सकता है, उसे मिटा भी सकता है. पर क्या ऐसा होगा? निकट भविष्य में यह संभव होता नहीं दिखाई देता क्योंकि वर्चस्व की लालसा कोई भी समाज त्यागने को आसानी से तैयार नहीं होता. ऐसे में कथित ऊंची जातियां अपना यह मोह भला क्यों त्यागना चाहेंगी? लेकिन, मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि जातिगत भेदभाव को मिटाने का अचूक उपाय एक ही है और वह है अंतर्जातीय विवाह. मेरे जैसे युवा यह परिवर्तन लाएंगे."
"तो तुम समाज परिवर्तन करने निकले हो?"
"पापा, मैं कोई विद्यासागर तो हूं नहीं. लेकिन, इतना जरूर कह सकता हूं कि यदि हर व्यक्ति स्वयं को सुधार ले, तो समाज स्वयं ही सुधर जाएगा!"
"शिशिर, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं, लेकिन यह सुधार का काम तुम मेरे घर से बाहर निकल कर करो. इस शादी के बाद मेरा तुम से कोई संबंध नहीं रहेगा."