लेखक- सुरेंद्र कुमार

सुंदर के मन में ऐसी कशमकश पहले शायद कभी भी नहीं हुई थी. वह अपने ही खयालों में उलझ कर रह गया था.

सुंदर बचपन से ही यह सुनता आ रहा था कि औरत घर की लक्ष्मी होती है. जब वह पत्नी बन कर किसी मर्द की जिंदगी में आती है, तो उस मर्द की किस्मत ही बदल जाती है.

सुंदर सोचता था कि क्या उस के साथ भी ऐसा ही हुआ था? कलावती के पत्नी बन कर उस की जिंदगी में आने के बाद क्या उस की किस्मत ने भी करवट ली थी या सचाई कुछ और ही थी?

खूब गोरीचिट्टी, तीखे नाकनक्श और देह के मामले में खूब गदराई कलावती से शादी करने के बाद सुंदर की जिंदगी में जबरदस्त बदलाव आया था. पर इस बदलाव के अंदर कोई ऐसी गांठ थी, जिस को खोलने की कोशिश में सुंदर हमेशा बेचैन हो जाता था.

एक फैक्टरी में क्लर्क के रूप में 8 हजार रुपए महीने की नौकरी करने वाला सुंदर अपनी माली हालत की वजह से खातेपीते दोस्तों से काफी दूर रहता था

सुंदर अपने दोस्तों की महफिल में बैठने से कतराता था. उस के कतराने की वजह थी पैसों के मामले में उस की हलकी जेब. सुंदर की जेब में आमतौर पर इतने पैसे ही नहीं होते थे कि वह दोस्तों के साथ बैठ कर किसी रैस्टोरैंट का मोटा बिल चुका सके.

लेकिन शादी हो जाने के बाद एकाएक ही सबकुछ बदल गया था. सुंदर की अहमियत उस के दोस्तों में बहुत बढ़ गई थी. बड़ीबड़ी महंगी पार्टियों से उस को न्योते आने लगे थे. बात दूरी की हो, तो एकाएक ही सुंदर पर बहुत मेहरबान हुए अमीर दोस्त उस को लाने के लिए अपनी चमचमाती गाड़ी भेज देते थे.

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