‘अरे, यह अर्चना है?’ नीरा आश्चर्य व्यक्त करते हुए प्रसन्न हो उठी, ‘तुम दोनों ने मिल कर मुझे बेवकूफ बनाया. आओ अर्चना,’ नीरा ने उसे प्यार से अपने पास बैठा लिया, ‘कहां से घूम कर आ रहे हो तुम दोनों?’
‘भाभी, आज मैं औफिस से जल्दी आ गया था. अर्चना को तुम से मिलवाने लाना था न.’
‘यह तुम ने बहुत अच्छा किया, यतीन. मैं तो स्वयं ही तुम से कहने वाली थी.’
अर्चना करीब 2 घंटे वहां बैठी रही. नीरा ने उस से बहुत सी बातें कीं. जब यतीन उसे छोड़ कर वापस आया तो नीरा ने कहा, ‘लड़की मुझे पसंद है. अपने लिए मुझे ऐसी ही देवरानी चाहिए.’
‘सच, भाभी,’ प्रसन्नता के अतिरेक में यतीन चहक उठा, ‘बस फिर तो भाभी, बाबूजी और भैया को ऐसी पट्टी पढ़ाओ कि वे लोग तैयार हो जाएं.’
‘परंतु अर्चना राजपूत है और हम लोग ब्राह्मण. मुझे डर है, बाबूजी इस रिश्ते के लिए कहीं इनकार न कर दें.’
‘सबकुछ तुम्हारे हाथ में है, भाभी. तुम कहोगी तो बाबूजी मान जाएंगे.’
किंतु बाबूजी सहमत न हुए. नरेन को तो नीरा ने तुरंत राजी कर लिया था मगर बाबूजी के समक्ष उस की एक न चली. एक दिन रात को नरेन और नीरा ने जब इस विषय को छेड़ा तो बाबूजी ने क्रोधित होते हुए कहा, ‘तुम लोगों ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं इस रिश्ते के लिए सहमत हो जाऊंगा. यतीन के लिए मेरे पास एक से एक अच्छे रिश्ते आ रहे हैं.’
‘वह भी बहुत अच्छी लड़की है, बाबूजी. आप एक बार उस से मिल कर तो देखिए. सुंदर, पढ़ीलिखी और अच्छे संस्कारों वाली लड़की है.’