सोनिका सुबह औफिस के लिए तैयार हो गई तो मैं ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटी, आराम से नाश्ता कर लो, गुस्सा नहीं करते, मन शांत रखो वरना औफिस में सारा दिन अपना खून जलाती रहोगी. मैनेजर कुछ कहती है तो चुपचाप सुन लिया करो, बहस मत किया करो. वह तुम्हारी सीनियर है. उसे तुम से ज्यादा अनुभव तो होगा ही. क्यों रोज अपना मूड खराब कर के निकलती हो?’’
‘‘आप को क्या पता, मौम, बस मुझे और्डर दे कर इधरउधर घूमती रहती है. फिर कभी कहती है, यह अभी तक नहीं किया, इतनी देर से क्या कर रही हो? जैसे हम जूनियर्स उस के गुलाम हैं. हुंह, मैं किसी दिन छोड़ दूंगी सब कामवाम, तब उसे फिर से किसी जूनियर को सारा काम सिखाना पड़ेगा.’’
‘‘नहीं, सोनू, मैनेजर्स अपने जूनियर्स के दुश्मन थोड़े ही होते हैं. नए बच्चों को काम सिखाने में उन्हें थोड़ा तो स्ट्रिक्ट होना ही पड़ता है. तुम्हें तो औफिस में सब पर गुस्सा आता है. टीमवर्क से काम चलता है, बेटा.’’
‘‘मौम, इस मामले में आप मुझे कुछ न कहो तो अच्छा है. मैं जानती हूं आप को किस ने सिखा कर भेजा है. वे भी सीनियर हैं, मैनेजर हैं न, वे क्या जानें किसी जूनियर का दर्द.’’
‘‘कैसी बातें कर रही हो, सोनू, वे तुम्हारे पापा हैं.’’
‘‘मुझे तो अब वे एक सीनियर मैनेजर ही लगते हैं. मैं जा रही हूं, बाय,’’ वह नाश्ता बीच में ही छोड़ कर खड़ी हो गई तो मैं ने कहा, ‘‘सोनू, नाश्ता तो खत्म करो.’’
‘‘मैनेजर साहब को खिला देना, उन्हें तो जाने की जल्दी भी नहीं होगी. मुझे जाना है वरना मेरी मैनेजर, उफ्फ, अब बाय,’’ कह कर सोनू चली गई.