लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी
अगले दिन प्रवीण के औफिस जाने के बाद दरवाजे पर खटखट की आवाज
आई. मैं ने दरवाजा खोला तो सामने एक बेहद खूबसूरत औरत, जिस के हाथ में चाबी थी, शायद वह फ्लैट का लौक खोलने की कोशिश कर रही थी. मुझे एकटक देखे जा रही थी... जैसे कोई अजूबा देख लिया हो.
‘‘आप कौन? अपनी तरफ ऐसे देख मैं थोड़ी घबरा गई, इसलिए सीधा सवाल किया.
‘‘यह फ्लैट तो प्रवीण का है, आप कौन हैं?’’ उस ने मेरे सवाल का जवाब सवाल में दिया.
‘‘मैं प्रवीण की वाइफ गौरी हूं. कल ही हम लोग आए हैं.’’
मेरा यह कहना था कि वह मुझे चौंक कर देख कर चकरा गई. मैं ने झट से उसे सहारा दिया और अंदर ले आई. पानी पिलाया तो वह कुछ संभली.
‘‘आप ठीक तो हैं, कौन हैं आप?’’ मेरे जेहन में कई तरह के सवाल आ रहे थे.
‘‘जी, माफ करें, मैं आप के ऊपर वाले फ्लैट में रहती हूं, कल बाहर गई थी. रात में वापस आई, इसलिए पता नहीं चला कि प्रवीण वापस आ गए हैं, मैं तो सफाई करवाने आई थी,’’ उस ने खुद को सयंत करते हुए कहा.
‘‘वह तो.. वह आप हैं, कल प्रवीण ने बताया था कि उन के कोई फ्रैंड ऊपर वाले
फ्लैट में रहते हैं, वही साफसफाई करवा देते
हैं, पर आप की तबीयत सही नहीं लग रही,’’ मैं ने कहा.
‘‘हां कमजोरी महसूस कर रही हूं कुछ दिनों से, शायद इसीलिए चक्कर आ गया होगा.’’
‘‘अरे... तो फिर आप को आराम करना चाहिए और आप मेरे घर की देखभाल में लगी हैं, आप बैठिए मैं चाय बनाती हूं.’’