लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी
भाई का फोन आया कि अगले माह शायद फैसला मिल जाए.
‘‘मां, मैं अगले महीने क्याक्या करूंगी. ऐग्जाम्स भी सिर पर हैं, डिलिवरी डेट भी अगले महीने और मेरे और प्रवीण के तलाक का फैसला भी अगले महीने,’’ मैं मां की गोद में सिर रख कर रोने लगी.
‘‘गौरी... मेरी बच्ची, ऐसे हिम्मत नहीं हार सकती, तुम इतने महीनों से किसकिस मानसिक तनाव से गुजरते हुए यहां तक पहुंची हो और जब सभी परेशानियों का हल निकलने जा रहा है तो तुम्हारी आंखों में आंसू,’’ मां ने मेरे आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘इन आंसुओं को अपनी हिम्मत बनाओ और आगे बढ़ो बेटी, तुम्हारे साथ हम सब खड़े हैं, मां की बातें और उन के प्यार से मुझे हिम्मत मिली.
मां, बाबा, भाई, भाभी, बेला दीदी और मां सब की कितनी उम्मीदें हैं मुझ से, सभी ने मुझ पर भरोसा किया है कि मैं इस कठिन समय को हरा दूंगी, इतनी आसानी से मैं हार नहीं मान सकती. इन सब के साथ मेरी कोख में पल रहे मेरे बच्चे का भी तो साथ है, कभीकभी महसूस होता है जैसे वह कह रहा है कि मां तुम कभी अपना हौसला न खोना, यह लड़ाई मैं भी लड़ रहा हूं तुम्हार साथ.
आखिर वह दिन भी आ ही गया. मेरा और प्रवीण का रिश्ता अब खत्म हो चुका था. प्रवीण उदास से खड़े कभी मुझे देखते तो कभी मां को, जो मेरा हाथ पकड़ कर खड़ी थीं. मां ने उन की तरफ देखा भी नहीं और मेरा हाथ थामे कोर्ट की सीढि़यां उतरने लगीं, उस दिन के बाद मैं ने कभी प्रवीण को नहीं देखा.