बाप और बेटी के ठहाकों की आवाज़ें किचन तक आ रहीं थी,कभी रिया फुसफुसा कर कुछ कहती तो कभी ये धीरे से ये कुछ कहते ,और फिर अनवरत हँसी का फव्वारा छूट पड़ता.
बापबेटी अपने हँसी के समंदर में गोते लगा ही रहे थे ,कि गौरी भी कॉफी देने कमरे में गयी तो रिया गौरी से लिपटते हुए बोली
"अरे....माँ कभी हमारे साथ भी बैठ लिया करो और थोड़ा हँस भी लिया करो ....
आप अपने होठों को कैसे सीये रहती हो ,मेरा तो मुंह ही दर्द हो जाये और हाँ....माँ ....आपको तो अच्छे अच्छे जोक पर भी हँसी नहीं आती है ....कैसे माँ....तुम कभी हँसती क्यों नहीं हो....?"
रिया ने बात खत्म करी तो उसके समर्थन में ये भी उतर आये , और हसते रहने के महत्व पर पूरा लेक्चर ही दे डाला.
पर फिर भी गौरी चुप ही रही रिया ने अपने पापा की ओर देखा पर गौरी के मौन ने सब कुछ कह डाला ,और शायद ये बात विराम भी समझ गए ,इसीलिये तुरंत ही बात बदलकर रिया से उसके कॉलेज की राजनीति पर बात शुरू कर दी.
रिया जब भी कॉलेज से घर आती तो घर में ऐसा ही माहौल रहता ,पर उसके मासूम सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं होता,भला अपनी खमोशी और उदासी का क्या कारण बताती वह ,और अगर बताती भी तो पता नहीं रिया का क्या रिएक्शन होता गौरी के प्रति, इसलिए वह खामोश ही थी.
गौरी दोबारा जब कमरे में गयी तब तक रिया टीवी पर "टॉम और जैरी " कार्टून फिल्म देख रही थी और ठहाके लगाकर हँस रही थी,गौरी को रिया ने खींचकर अपने पास बैठा लिया और शिकायती लहज़े में माँ से बोली