आज सरवन की तेरवीं थी ,घर के लोग उसके घर भोज में गए हुए थे,पता नहीं ये बात संतोषी चाची के आदमी को कैसे पता चल गयी
"गौरी....ओ ..गौरी ...अरे कहा है रे तू ...
देख तो तेरे लिए दूसरा मिठ्ठू लाया हूँ
संतोषी के मरद की आवाज़ सुनते ही सहम गयी थी गौरी ,आत्मा का दर्द एक बार फिर ताज़ा हो आया था ,पहले तो छत पर ही दुबक गयी ,आँखों और मुट्ठियों को किसके भीचें ,अपने शरीर को छोटा और छोटा करते हुए पर। मिठ्ठू वाली बात ने उसके बाल सुलभ मन को थोड़ा कमज़ोर किया था पर अपनी भावनाओं पर काबू पाना शायद स्त्री जाति में प्राकृतिक गुण ही तो है.
गिद्ध ,बाज़ और मक्खी की नाक और नज़र बड़ी पैनी होती है वे अपने शिकार को सूँघ ही लेते हैं.
संतोषी का मरद भी छत पर जा पहुंचा ,उसकी आहट जान सिहर उठी थी गौरी,उसकी सिहरन अभी खत्म भी न हो पायी थी कि एक पंजा उसकी पीठ को सहलाने लगा ,गौरी अभी बच्ची थी उसका डर भी स्वाभाविक था ,पर आज जैसे ही गिद्ध ने अपनी चोंच आगे बढ़ा कर शिकार करने चाहा ,गौरी ने प्रतिरोध किया पर उसका शक्ति प्रदर्शन एक पुरुष के सामने कहाँ चलने वाला था.
अपने आपको नर्क में गिरता देख गौरी ने चाचा की कलाई पर पूरी शक्ति से काटा , एक बारगी कराह तो उठा था चाचा,पकड़ ढीली हुयी तो गौरी बेतहाशा भागी और ऐसी भागी की नीचे की सीढ़ियों की जगह छत से सीधे नीचे ही आ गिरी .
कितनी चोट लगी थी ,कितनी नहीं ,गौरी को उसका गम नहीं था पर ज़मीन पर पड़े हुए जब उसकी नज़रें छत की और गयी तो उसने चाचा को अपनी और देखता हुआ पाया और गौरी के मन में एक संतोष सा उभर आया था कि आज उसने अपनी रक्षा कर ली है.