शिखा की आंखों से नींद कोसों दूर थी. मन में तरहतरह की आशंकाएं घुमड़ रही थीं. उस की बेचैन निगाहें बारबार घड़ी की ओर जा टिकतीं. रात का 1 बज चुका था, कहां रह गए शिशिर?
दोपहर में इंदौर से आए फोन ने उसे लगभग चेतना शून्य ही कर दिया था. बड़ी भाभी ने रुंधे गले से बमुश्किल इतना बताया कि तुम्हारे भैया को हार्ट अटैक हुआ है... आईसीयू में भरती करा दिया है. डाक्टरों ने तुरंत बाईपास सर्जरी की आवश्यकता बताई है, जिस पर करीब 2 लाख रुपए खर्च आएगा.
भाभी इस बात को ले कर काफी व्यथित थीं कि इस समय इतने रुपए की व्यवस्था कहां से और कैसे हो सकेगी. शिखा ने भाभी को हौसला बनाए रखने की सलाह दी व शीघ्र इंदौर पहुंचने का आश्वासन दिया.
कुछ संयत हो कर शिखा ने सब से पहले शिशिर को फोन कर के घटना की जानकारी दी. शिशिर की व्यस्तता से वह भलीभांति परिचित थी इसलिए अकेले ही भैया के पास जाने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन शिशिर का अब तक घर न पहुंचना अनेक आशंकाओं को जन्म दे रहा था. एकएक मिनट घंटों के समान बीत रहा?था. इंतजार के इन पलों में उस के मानस पटल पर वह कभी न भूलने वाली घटना चलचित्र की भांति जीवंत हो उठी.
शिखा के विवाह से पहले की बात है. मां को ब्रेन हैमरेज हो गया था. काफी इलाज के बाद वह ठीक तो हुईं पर अकसर बीमार रहने लगीं. शिखा पर पढ़ाई के साथसाथ घरगृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी भी आ पड़ी. कभी पीएच.डी. को अपना ध्येय बना चुकी शिखा ने पारिवारिक कर्तव्यों की पूर्ति के लिए अपने लक्ष्य को तिलांजलि दे दी और एक स्थानीय स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली.