हमेशा की तरह आज भी जब किशोर देर से घर लौटा और दबेपांव अपने कमरे की ओर बढ़ा तो नीरा ने आवाज लगाई, ‘‘कहां गए थे?’’ ‘‘कहीं नहीं, मां. बस, दोस्तों के साथ खेलने गया था,’’ कहता हुआ किशोर अपने कमरे में चला गया. नीरा पीछेपीछे कमरे में पहुंच गई, बोली, ‘‘क्यों, यह कोई खेल कर घर आने का समय है? इतनी रात हो गई है, अब पढ़ाई कब करोगे? तुम्हें पता है न, तुम्हारी बोर्ड की परीक्षा है और तुम ने पढ़ाई बिलकुल भी नहीं की है. तुम्हारे क्लासटीचर भी बोल रहे थे कि तुम नियमित रूप से स्कूल भी नहीं जाते और पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगाते. आखिर इरादा क्या है तुम्हारा?’’
‘‘जब देखो, आप मेरे पीछे पड़ी रहती हैं, चैन से जीने भी नहीं देतीं, जब देखो पढ़ोपढ़ो की रट लगाए रहती है. पढ़ कर आखिर करना भी क्या हैं, कौन सी नौकरी मिल जानी है. मेरे इतने दोस्तों के बड़े भाई पढ़ कर बेरोजगार ही तो बने बैठे हैं. इस से अच्छा है कि अभी तो मजे कर लो, बाद की बाद में देखेंगे,’’ कह कर उस ने अपने मोबाइल में म्यूजिक औन कर लिया और डांस करने लगा. नीरा बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में आ गई. नीरा किशोर की बिगड़ती आदतों से काफी परेशान रहने लगी थी. वह न तो पढ़ाई करता था और न ही घर का कोई काम. बस, दिनभर शैतानियां करता रहता था. दोस्तों के साथ मटरगश्ती करना और महल्ले वालों को परेशान करना, यही उस का काम था. जब भी नीरा उस से पढ़ने को कहती, वह किताब उठाता, थोड़ी देर पढ़ने का नाटक करता, फिर खाने या पानी पीने के बहाने से उठता और दोबारा पढ़ने को नहीं बैठता.